पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इति मान लेते हैं। परिणामतः हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच वैर-भाव बढ़ गया; विवादका कारण उपस्थित हो गया और इस प्रवृत्तिके फलस्वरूप अधिक पशुओंका वध हुआ है, कारण कि मुसलमान भाई [इस विषयमें] हठधर्मी करने लगे हैं। गाय को बचानेके लिए अपने प्राण उत्सर्ग करना हमारा परम धर्म है।

लेकिन आज हमें अमूल्य अवसर प्राप्त हुआ है और मैंने उसे हाथ बढ़ाकर ले लिया है। प्रत्येक हिन्दू उस अवसरका लाभ उठाकर गायकी सहज ही रक्षा कर सकता है। मुसलमानोंपर इस समय भारी संकट आ पड़ा है; उनके दीनका अपमान हुआ है। इस समय आपको बिना किसी शर्तके, बदलेमें बिना किसी वस्तुकी अपेक्षा किये उनकी सहायता करनी चाहिए। पड़ोसीके नाते ऐसा करना हमारा कर्त्तत्व है। जो व्यक्ति अपने कर्त्तव्यका पालन करता है वह चाहे या न चाहे, उसे फलकी प्राप्ति होती है। मुसलमानोंके प्रति अपने कर्त्तव्यका पालन करके हम उनकी सज्जनताको चुनौती देते हैं। जिस मैत्रीमें बदलेकी अपेक्षा की जाती है वह सच्ची मैत्री नहीं है। वह तो व्यपार है। हम इस समय व्यापारके विचारको भूलकर मुसलमानोंकी सहायता करें क्योंकि [गो] रक्षा करना उन्हींके हाथमें हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि ऐसे मामलोंमें मुसलमानोंका विश्वास नहीं किया जा सकता। मुझे तो मनुष्य-स्वभावपर भरोसा है; इस्लामपर एतबार है। सज्जनताका बदला सज्जनता ही होता है——यही ईश्वरीय न्याय है। जब हमारा हेतु मिश्रित होता है तभी हमें विपरीत परिणामोंकी उपलब्धि होती है। आज भी मुसलमान अपनी ओरसे बहुत-कुछ कर रहे हैं। मौलाना अब्दुल बारी साहबने मेरी मदद करना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने अपने धर्ममें गोरक्षाका समर्थन देखा। हकीम अजमलखाँ गोरक्षाके निमित्त अथक परिश्रम कर रहे हैं। दोनों अली भाइयोंके घरमें गोमांस आना ही बन्द हो गया है।

इस तरह जो सुधार हो रहे हैं उनपर सन्देह करके अथवा उतावलीके कारण हमें उनकी गति अवरुद्ध नहीं करनी चाहिए।

अनेक स्थानोंपर मैं गोवधका निषेध करनेके सम्बन्धमें कानून बनाये जानेका आन्दोलन होते देखता हूँ। कुछ स्थानोंपर मैं मुसलमानोंसे शर्त किये जानेकी बातें सुनता हूँ। दोनों बातोंमें मुझे तो नुकसान ही दिखाई देता है। कट्टर हिन्दुओंके समक्ष इस समय एक ही कर्त्तव्य है और वह यह कि चुपचाप मुसलमानोंकी मदद करें। यह उनका नैतिक कर्त्तव्य भी है। इसीमें दोनों धर्मोके मानकी रक्षा निहित है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-८-१९२०