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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विश्वासके अनुरूप ही उसे उत्तर दिया था कि उस हालतमें हिंसा करके भी मेरी रक्षा करना उसका कर्त्तव्य था। अपनी इसी मान्यताके अनुसार मैंने बोअर-युद्धमें, तथाकथित जूलू-विद्रोहमें और गत महायुद्धमें भाग लिया। कोई भारतका अपमान करे और भारत कायरतापूर्वक या लाचार बनकर अपना अपमान होते देखता रहे, इसकी अपेक्षा मैं चाहूँगा कि वह अपने सम्मानकी रक्षाके लिए शस्त्र उठाकर भिड़ जाये।

लेकिन मेरे विचारसे अहिंसा हिंसासे लाख दर्जे अच्छी चीज है, क्षमाशीलतामें दण्ड देनेकी अपेक्षा अधिक पौरुष है। कहा भी है, "क्षमा वीरस्य भूषणम्" अर्थात् क्षमा वीरोंका भूषण है। लेकिन अपना हाथ रोके रहनेमें क्षमाशीलता तभी है जब उस व्यक्तिमें दण्ड देनेकी शक्ति हो। दीन और असहाय व्यक्तिकी क्षमा निरर्थक है। अगर कोई चूहा किसी बिल्लीको अपने शरीरके चिथड़े कर लेने दे तो उसका मतलब यह नहीं होगा कि उस चूहेने बिल्लीको क्षमा कर दिया। इसलिए जो लोग जनरल डायर और उनके अन्यायी साथियोंको सजा देनेकी आवाज उठाते हैं, उनकी भावनाको मैं समझता हूँ। अगर उनका वश चले तो वे जनरल डायरके चिथड़े कर दें। लेकिन मैं नहीं मानता कि भारत दीन और असहाय है। मैं इतना ही चाहता हूँ कि भारतकी और मेरी शक्तिका उपयोग एक बड़े उद्देश्यके लिए हो।

लेकिन जब मैं शक्तिकी बात कहता हूँ तो आप मुझे गलत न समझें। शक्ति किसीकी शारीरिक क्षमतासे ही उद्भूत नहीं होती। यह तो हृदयकी अदम्य इच्छासे उत्पन्न होती है। अगर शारीरिक क्षमताकी बात लें तो कोई भी सामान्य जूलू किसी भी सामान्य अंग्रेजसे बहुत शक्तिशाली होता है। लेकिन वह किसी अंग्रेज लड़केको देखकर भाग खड़ा होता है, क्योंकि वह उस लड़केके रिवाल्वरसे या उन लोगोंसे डरता है जो उस लड़केकी खातिर रिवाल्वरका प्रयोग करेंगे। वह मृत्युसे डरता है और अपने हृष्ट-पुष्ट कद्दावर शरीरके बावजूद साहस छोड़ देता है। हम भारतके लोग क्षण-भरमें यह बात समझ सकते हैं कि तीस करोड़ लोगोंको एक लाख अंग्रेजोंसे डरनेका कोई कारण नहीं है। इसलिए अगर हम उनके प्रति असंदिग्ध रूपसे क्षमाशीलताका भाव रखते हैं तो इसका मतलब होगा, हमने उतने ही निश्चित रूपसे अपनी शक्तिको पहचान लिया है। इस विवेकजनित क्षमाशीलता के साथ ही हममें शक्तिकी ऐसी जबरदस्त लहर आयेगी कि फिर किसी भी डायर या फ्रेंक जॉन्सनके लिए निष्ठावान भारतीयोंको अपमानित कर सकना असम्भव हो जायेगा। अगर मैं इस समय लोगोंको अपनी बात न समझा पाऊँ तो मुझे उसकी कोई परवाह नहीं। हमें जिस बुरी तरह पददलित किया गया है, उसे देखते यह असम्भव है कि हममें क्रोध और प्रतिशोधकी भावना न हो। लेकिन मैं यह अवश्य कहूँगा कि भारत अपना दण्ड देनेका अधिकार छोड़कर अधिक लाभ पा सकता है। हमें इससे बेहतर काम करना है, दुनियाको एक उच्चतर सन्देश देना है।

मैं स्वप्नदर्शी नहीं हूँ। मैं एक व्यावहारिक आदर्शवादी व्यक्ति होनेका दावा करता हूँ। अहिंसा-धर्म केवल ऋषियों और सन्तोंके लिए ही नहीं है। यह आम लोगोंके लिए भी है। जैसे पशु-जगत्का नियम हिंसा है, वैसे ही मनुष्य जातिका नियम अहिंसा है। पशुकी आत्मा सोई रहती है और वह शारीरिक बलके अलावा और कोई