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खड्ग-बलका सिद्धान्त

नियम नहीं जानता। लेकिन मनुष्यका गौरव एक उच्चतर नियम—— आत्माकी शक्ति——के निर्देशपर चलनेमें है।

इसलिए मैंने भारतके सामने आत्मबलिदानके प्राचीन नियमको रखनेका साहस किया है। सत्याग्रह और उसकी शाखाएँ——अर्थात् असहयोग और सविनय अवज्ञा——ये सब और कुछ नहीं कष्टसहनके नियमके ही नये-नये नाम हैं। जिन ऋषियोंने पूर्ण हिंसाके बीच अहिंसाके नियमको खोज निकाला वे न्यूटनसे कहीं अधिक मेधावान थे। वे स्वयं वेलिंग्टनसे [१]भी बड़े योद्धा थे। वे स्वयं शस्त्र-प्रयोगमें निष्णात थे, अतः उन्होंने उसकी निरर्थकता समझी और इसलिए थके-हारे संसारको उन्होंने सिखाया कि उसकी मुक्तिका मार्ग हिंसा नहीं, अहिंसा है।

सक्रिय अहिंसाका मतलब है स्वेच्छासे कष्टसहन। इसका मतलब अन्यायीकी इच्छाके आगे दीनतापूर्वक झुक जाना नहीं है। इसका मतलब तो अपनी आत्माकी समस्त शक्तिसे अत्याचारीका विरोध करना है। हमारे अस्तित्वको सार्थक बनानेवाले इस नियमका अनुसरण करके कोई अकेला व्यक्ति भी अपने सम्मान, अपने धर्म और अपनी आत्माकी रक्षा करनेके लिए एक अन्यायी साम्राज्यकी समस्त शक्तिको चुनौती दे सकता है और उस साम्राज्यके पतन या पुनरुद्धारका कारण बन सकता है।

अतः यदि मैं भारतसे अहिंसाका आचरण करनेको कह रहा हूँ तो उसका कारण यह नहीं है कि भारत कमजोर है। मैं उससे अपनी शक्ति और बलको जानते हुए भी अहिंसाका आचरण करनेको कहता हूँ। इस शक्तिका बोध प्राप्त करनेके लिए उसे शस्त्रास्त्र चलानेका प्रशिक्षण लेनेकी जरूरत नहीं है। आज अगर हमें उसका प्रशिक्षण लेनेकी जरूरत जान पड़ती है तो उसका कारण यह है कि शायद हम अपने-आपको हाड़-मांसका लोंदा-भर समझते हैं। मैं चाहता हूँ, भारतको इसकी प्रतीति हो जाये कि उसके पास आत्मा भी है जिसका कभी नाश नहीं हो सकता, और जो समस्त शारीरिक दुर्बलताओंके बावजूद समस्त संसारके संयुक्त भौतिक-बलको चुनौती दे सकती है। राम तो सिर्फ एक साधारण मनुष्य ही थे, लेकिन वे अपनी वानरसेना लेकर उस दशशीश रावणकी उद्धत शक्तिके मुकाबले जा डटे जो चारों ओर घहराते समुद्रसे घिरी लंकामें अपनेको पूर्णतया सुरक्षित मानता था। क्या यह शारीरिक शक्तिपर आत्मिक शक्तिकी विजयका द्योतक नहीं है? लेकिन एक व्यावहारिक व्यक्ति होनेके नाते मैं उस समयतक प्रतिज्ञा नहीं करूँगा जबतक भारत यह न स्वीकार कर ले कि राजनीतिक दुनियामें अध्यात्म एक व्यवहार्य चीज है। भारत इंग्लैंडकी मशीनगनों, टैंकों और विमानोंके सामने अपने-आपको शक्तिहीन और असहाय समझता है; और वह अपनी दुर्बलताके कारण ही असहयोगका सहारा ले रहा है। फिर भी, इससे वही उद्देश्य सिद्ध होगा, अर्थात् अगर पर्याप्त संख्यामें लोगोंने असहयोग किया तो भारत ब्रिटिश अन्यायके भयंकर बोझसे मुक्त हो जायेगा।

१८–१०

  1. अंग्रेज जनरल, जिसने नेपोलियनको वॉटरलूके मैदानमें अन्तिम रूपसे पराजित किया था।