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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१७४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं असहयोगको सिन फैनवादसे[]अलग मानता हूँ, क्योंकि इसकी कल्पनाके अनुसार असहयोगका प्रयोग हिंसाके साथ-साथ कर सकना सम्भव नहीं है। लेकिन मैं हिंसावादी लोगोंको भी एक बार इस शान्तिपूर्ण असहयोगको आजमाकर देखनेकी आमन्त्रित करता हूँ। अगर यह असफल होगा तो किसी सहज दोषके कारण नहीं बल्कि लोगोंके उत्साहकी कमीके कारण होगा। और यही अवसर असली खतरेका होगा। ऐसे उच्चात्मा व्यक्ति, जो राष्ट्रीय अपमानको सहनेके लिए अब कतई तैयार नहीं है, अपना क्षोभ बाहर निकालना चाहेंगे। और इसके लिए वे हिंसाका सहारा लेंगे। लेकिन जहाँतक मैं जानता हूँ, ऐसा करके वे न तो स्वयं ही इस अन्यायसे छुटकारा पा सकेंगे और न देशको ही दिला सकेंगे, बल्कि अपने प्रयासमें वे स्वयं नष्ट हो जायेंगे। भारत यदि खड्ग-बलके सिद्धान्तका सहारा ले तो हो सकता है, उसे कुछ समयके लिए सफलता मिल जाये। लेकिन भारत तब वह भारत नहीं रह जायेगा जिसपर मैं गर्व कर सकूँगा। भारतसे मेरे अभिन्न सम्बन्धका कारण यही है कि आज मेरे पास जो-कुछ है उसके लिए मैं उसीका ऋणी हूँ। मेरा निश्चित मत है कि उसे दुनियाको एक सन्देश देना है एक रास्ता दिखाना है। उसे यूरोपका अन्धानुकरण नहीं करना है। जिस समय भारत खड्ग-बलके सिद्धान्तको स्वीकार कर लेगा, वह मेरी परीक्षाकी घड़ी होगी। और मुझे आशा है, मैं इस कसौटीपर खरा ही सिद्ध होऊँगा। मेरा धर्म भौगोलिक सीमाओंसे बँधा हुआ नहीं है। अगर उसमें मेरा विश्वास सच्चा और सजीव है, तो वह भारतके प्रति मेरे प्रेमकी सीमाओंको लाँघ लेगा। मेरे जीवनका उद्देश्य अहिंसा-धर्मपर चलते हुए भारतकी सेवा करना है और अहिंसाको मैं हिन्दुत्वका मूल मन्त्र मानता हूँ।

जो लोग मुझमें विश्वास नहीं रखते, उनसे फिलहाल तो मैं यही अनुरोध करूँगा कि वे इस भ्रम में पड़कर कि मैं हिंसा चाहता हूँ, अभी-अभी आरम्भ होनेवाले इस संघर्षके मार्गमें लोगोंको हिंसाके लिए भड़काकर विघ्न न डालें। दुराव-छिपावको मैं पाप मानता हूँ, उससे घृणा करता हूँ। अहिंसक असहयोगको वे एक बार आजमाकर तो देखें, फिर उन्हें स्वयं ही मालूम हो जायेगा कि मेरे मनमें किसी प्रकारका दुराव-छिपाव नहीं था।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-८-१९२०
 
  1. आयरलैंडका एक हिंसात्मक राष्ट्रीय आन्दोलन। इस आन्दोलनके समर्थकोंका उद्देश्य भाषा-संस्कृति तथा राजनीतिके क्षेत्रमें भी राष्ट्रीय पुनर्जागरण लाना था।