पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आलोचकोंका कहना है कि अगर वकील और बैरिस्टर लोग मेरे फैलाये जालमें फँस जायें तो सरकारको तो इससे प्रसन्नता ही होगी। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। जो बात सामान्य स्थितिमें लागू होती है, वही असामान्य स्थितिमें लागू नहीं होती। साधारण समयमें सरकार वकीलों द्वारा अपनी तीव्र आलोचना नापसन्द कर सकती है, लेकिन जब उसके विरोधमें कोई जोरदार कार्रवाई की जा रही हो, ऐसे समयमें वह एक भी वकीलका समर्थन नहीं खोना चाहेगी; और वकालत करते रहना ही यह समर्थन है।

इसके अलावा, मेरी योजनामें धन्धा बन्द करनेका मतलब गतिहीनता नहीं है। वकीलोंको अपना धन्धा बन्द करके आराम नहीं करना है। उनसे यह अपेक्षा की जायेगी कि वे अपने मुवक्किलोंको अदालतोंका बहिष्कार करनेकी सलाह दें। वे लोगोंके विवाद निबटानेके लिए पंचायत-मण्डलोंकी व्यवस्था करेंगे। जो राष्ट्र एक ऐसी सरकारसे न्याय प्राप्त करनेको कृतसंकल्प हो जो न्याय देना नहीं चाहती, उसके लिए आपसी झगड़ोंमें अपना समय बरबाद करनेकी गुंजाइश नहीं है। वकीलोंसे अपने मुवक्किलोंकी यह सत्य समझानेकी अपेक्षा की जायेगी। पाठक शायद नहीं जानते होंगे कि इंग्लैंडमें गत महायुद्धके दौरान बहुत-से प्रमुख वकीलोंने अपना धन्धा बन्द कर दिया था। इस तरह अस्थायी तौरपर अपना धन्धा बन्द करके वकील लोग युद्ध-प्रयत्नमें, सिर्फ अपने अवकाश और मन बहलावके समयमें नहीं बल्कि पूरे समय काम करने लगे। असली राजनीति कोई खेल और मन बहलावकी चीज नहीं है। स्वर्गीय श्री गोखले अक्सर इस बातपर दुःख प्रकट करते थे कि हम लोगोंने राजनीतिको मन बहलावसे अधिक महत्त्व नहीं दिया। हम इस चीजको नहीं समझते कि बहुत ही गम्भीर भावसे अपना सारा समय लगाकर सरकारका काम करनेवाली प्रशिक्षित नौकरशाहीके विरुद्ध हमारी लड़ाइयोंका संचालन शौकिया राजनीतिज्ञोंके हाथोंमें रहनेसे देशकी कितनी बड़ी क्षति हुई है।

हमारे आलोचकोंका यह भी कहना है कि अपना धन्धा छोड़ देनेपर वकील लोग भूखों मरेंगे। यह बात सिन्हा-जैसे वकीलोंके लिए नहीं कही जा सकती। वे तो कभी-कभी यूरोप-भ्रमणके लिए या अन्य उद्देश्यसे यों भी अपना धन्धा बन्द कर देते हैं। लेकिन जो लोग इस धन्धेसे मुश्किलसे अपनी जीविका-भर कमा पाते है, वे अगर सच्चे और ईमानदार हों तो हर स्थानीय खिलाफत समिति उन्हें पूरा समय देनेके बदले मानदेयके रूपमें एक रकम देती रह सकती है।

अन्तमें मुसलमान वकीलोंकी बात लें, जिनके बारेमें कहा गया है कि अगर वे अपना धन्धा छोड़ देंगे तो तुरन्त ही उसका लाभ हिन्दू वकील उठायेंगे। मुझे आशा है कि अगर हिन्दू वकील अपना धन्धा बन्द न करेंगे तो कमसे-कम इतने साहसका परिचय तो अवश्य देंगे कि अपने मुसलमान भाइयोंके मुवक्किलोंको अपना मुवक्किल नहीं बनायेंगे। लेकिन मेरा निश्चित विश्वास है कि कोई भी धार्मिक प्रवृत्तिका मुसलमान यह नहीं कहेगा कि हम यह संघर्ष तभी चला सकते हैं जब त्याग और बलिदानमें हिन्दू भी हमारे साथ हों। अगर हिन्दू अपने कर्त्तव्यका पालन करते हुए मुसलमानोंका साथ देते हैं तो इससे उनका सम्मान बढ़ेगा और दोनों समुदायोंके