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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

माता-पिताओं और कालेजके वयस्क छात्रोंके बारेमें उनका क्या कहना है? उनका तो खितायाफ्ता लोगोंकी तरह सरकारसे कोई वैसा गहरा सम्बन्ध नहीं है। प्रश्न यह है कि उनकी भावनाएँ इतनी तीव्र हैं या नहीं कि वे स्कूली पढ़ाईका त्याग कर सकें?

लेकिन मेरे विचारसे स्कूल छोड़ देनेमें कोई त्याग और बलिदान है ही नहीं। अगर हम सरकारसे पूरी तरहसे स्वतन्त्र रहकर अपनी शिक्षाकी भी व्यवस्था नहीं कर सकते तो हम असहयोगके बिलकुल अनुपयुक्त हैं। हर गाँवको अपने बच्चोंकी शिक्षाकी व्यवस्था खुद ही करनी चाहिए। मैं तो इस मामलेमें सरकारी सहायतापर निर्भर करना बिलकुल पसन्द नहीं करूँगा। अगर हममें सच्ची जागृति आ जाये तो बच्चोंकी पढ़ाईमें एक दिनका भी व्यवधान न पड़े। जो शिक्षक आज सरकारी स्कूलोंको चला रहे हैं वे अगर त्यागपत्र दे दें तो वे हमारे राष्ट्रीय स्कूलोंका संचालन- भार सँभाल सकते हैं और हमारे बच्चोंमें से अधिकांशको बजाय मामूली क्लर्क बनानेके उन्हें जिन चीजोंकी शिक्षाकी जरूरत है, उन चीजोंकी शिक्षा दे सकते हैं। और बेशक, मैं अलीगढ़ कालेजसे इस मामलेमें नेतृत्व करनेकी अपेक्षा रखता हूँ। अगर हम मदरसोंको खाली कर दें तो उसका नैतिक प्रभाव बड़ा जबरदस्त होगा और मुझे इस बातमें कोई सन्देह नहीं कि हिन्दू माता-पिता और विद्यार्थी अपने मुसलमान भाई-बहनोंका अनुकरण करेंगे।

दरअसल माता-पिता और विद्यार्थी किताबी ज्ञानके पीछे न पड़कर अपनी धार्मिक भावनाका खयाल करें, इससे शानदार शिक्षा और क्या हो सकती है? इसलिए जो विद्यार्थी स्कूलों और कालेजोंसे हटा लिये जायें उनकी किताबी शिक्षाका अगर तत्काल कोई प्रबन्ध नहीं किया जा सकता तो जिस उद्देश्यके लिए उन्हें सर- कारी स्कूल छोड़नेकी जरूरत पड़ सकती है, उस उद्देश्यके लिए स्वयंसेवकोंके रूपमें काम करना एक लाभदायक शिक्षा सिद्ध हो सकती है। कारण वकीलोंकी तरह ही विद्यार्थियोंके मामलेमें भी मेरी कल्पना यह नहीं है कि वे स्कूल छोड़कर निष्क्रिय जीवन बितायें। स्कूल छोड़नेवाले सभी लड़कोंसे, अपनी योग्यता के अनुसार, इस आन्दोलनमें हाथ बँटानेकी अपेक्षा की जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-८-१९२०