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९३. भेंट : 'मद्रास मेल' के प्रतिनिधिसे[१]

१२ अगस्त, १९२०

[मद्रास मेलके] एक प्रतिनिधिने कल श्री मो॰ क॰ गांधीसे भेंट की। श्री गांधी दक्षिण भारतके कुछ प्रमुख मुस्लिम केन्द्रोंके दौरेके सिलसिलेमें मद्रास आये हुए हैं। वे कई कार्यकर्त्ताओंके साथ अपने कार्यक्रमपर विचार करनेमें व्यस्त थे; फिर भी उन्होंने जिस विषयको लेकर मुसलमान और हिन्दू आज इतने आन्दोलित हो उठे हैं, उस विषयसे सम्बद्ध प्रश्नोंके उत्तर देनेकी तत्परता दिखाई।

[प्रतिनिधि :] श्री गांधी, सत्याग्रहके अपने गतवर्षके अनुभवोंके बाद भी क्या आप यह सोचते हैं, आपको यह विश्वास है कि लोगोंको असहयोग करनेकी सलाह देना ठीक है?

[गांधीजी :] बिलकुल।

आप किस तरह मानते हैं कि गत वर्षके सत्याग्रह आन्दोलनके समयसे अब स्थिति बदल गई है?

मैं समझता हूँ कि अब लोग उस समयकी अपेक्षा अधिक अनुशासित हो गये हैं। इन लोगोंमें मैं जनसाधारणको भी गिनता हूँ, जिन्हें बहुत बड़ी संख्यामें देशके विभिन्न भागोंमें देखने-समझनेका मुझे अवसर मिला है।

और आपको भरोसा है कि जनसाधारण सत्याग्रहकी भावनाको समझता है?

हाँ, पूरा भरोसा है।

और यही कारण है कि आप असहयोगके कार्यक्रमको कार्यरूप देनेपर जोर दे रहे हैं?

हाँ, इसके अतिरिक्त एक और बात भी है। जिस खतरेकी आशंका सत्याग्रहके सविनय अवज्ञावाले हिस्सेमें थी, उसकी आशंका असहयोग में नहीं हैं, क्योंकि असहयोगमें हम कानूनोंकी सविनय अवज्ञाके कार्यक्रमको सार्वजनिक आन्दोलनके रूपमें नहीं अपनाने जा रहे हैं। अबतक जो परिणाम सामने आये हैं, वे बहुत उत्साहवर्धक हैं। उदाहरणके लिए, यद्यपि अधिकारियोंने सिंध और दिल्लीके नागरिकोंकी स्वतन्त्रतापर बहुत क्षोभकारी प्रतिबन्ध लगा रखे हैं, फिर भी राजद्रोहात्मक सभा-सम्बन्धी घोषणाके बारेमें समितिकी हिदायतोंका उन्होंने पूरी तरह पालन किया है। यही बात दीवारोंपर पर्चे न चिपकाने के आदेशके बारेमें भी है। वैसे तो हम नहीं मानते कि

  1. यह १३-८-१९२० के मद्रास मेलमें इस शीर्षकसे छपा था: "श्री गांधीके साथ एक बातचीत/असहयोगसे सम्बन्धित बातोंका खुलासा"; प्रस्तावना स्वरूप लिखे गये पैरेके साथ भेंटका यह विवरण यंग इंडियामें उद्धृत किया गया था।