क्या आपको इसे सिर्फ सरकारका कारोबार ठप कर देनेकी दृष्टिसे अपनानेमें भी संवैधानिकता ही नजर आती है?
बेशक, इसमें असंवैधानिकता तो जरा भी नहीं है, लेकिन कोई समझदार व्यक्ति ऐसे सभी उपायोंका जो संवैधानिक हों किन्तु अन्यथा वांछनीय न हों, प्रयोग नहीं करेगा; और न मैं लोगोंको ऐसा करनेकी सलाह ही देता हूँ। मैं असहयोगका अनुष्ठान क्रमिक तौरपर कर रहा हूँ, क्योंकि मैं एक कृत्रिम व्यवस्थाके बदले सच्ची व्यवस्थाको विकसित करना चाहता हूँ। असहयोगके सिलसिलेमें मैं ऐसा कोई कदम नहीं उठाने जा रहा हूँ, जिसके बारेमें मुझे इस बातका पूरा भरोसा न हो कि देश उसके लिए तैयार है, अर्थात् असहयोगके परिणामस्वरूप अराजकता और अव्यवस्था नहीं फैलेगी।
आप यह निश्चय कैसे करेंगे कि अराजकता नहीं फैलेगी?
उदाहरण के लिए अगर मैं पुलिसको हथियार रख देनेकी सलाह देता हूँ तो वैसा उसी हालतमें करूँगा जब मुझे यह भरोसा हो जाये कि चोरों और डाकुओंसे हम अपनी रक्षा आप कर सकते हैं। लाहौर और अमृतसरके नागरिकोंने, जब सेना और पुलिस बहाँसे हट गई थी तब, स्वयंसेवकोंकी व्यवस्था करके ठीक यही काम किया था। जहाँ सरकार पर्याप्त सैनिकोंके अभावमें सुरक्षाका कोई उपाय नहीं कर पाई थी, मैं जानता हूँ वहाँ भी, लोगोंने सफलतापूर्वक अपनी सुरक्षाकी व्यवस्था की।
आपने वकीलोंको अपना धन्धा बन्द करके असहयोग करनेकी सलाह दी है। इस सम्बन्धमें आपका अपना अनुभव क्या है? क्या आपके अनुरोधपर इस काममें इतने वकील शामिल हुए हैं कि आप ऐसी आशा कर सकें कि इस तरहके लोगोंकी सहायतासे आप असहयोग आन्दोलनको उसके सभी चरणोंसे सफलतापूर्वक निभा ले जा सकेंगे?
मैं यह नहीं कह सकता कि मेरे अनुरोधके उत्तरमें अभीतक बहुत ज्यादा लोग असहयोग आन्दोलनमें शामिल हुए हैं। कितने लोग शामिल होंगे, यह कहनेका समय भी अभी नहीं आया है। लेकिन मैं इतना कह सकता हूँ कि असहयोग समिति असहयोगके कार्यक्रमको सभी चरणोंसे सफलतापूर्वक निभा ले जाये, इसके लिए भी सिर्फ वकीलों और उच्च शिक्षा प्राप्त लोगोंपर ही मैं निर्भर नहीं कर रहा हूँ। जहाँतक असहयोगके कार्यक्रमके अगले चरणोंका सम्बन्ध है, मेरी आशा अधिकतर जनसाधारणपर ही टिकी हुई है।
यंग इंडिया १८-८-१९२०