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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१८४

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९४. भाषण : असहयोगपर[]

१२ अगस्त, १९२०

अध्यक्ष महोदय और दोस्तो,

पिछले वर्षकी तरह ही इस बार भी मुझे बैठकर ही बोलना पड़ेगा——इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। पिछले वर्षकी अपेक्षा मेरी आवाजमें ज्यादा जोर आ गया है, लेकिन शरीर अब भी कमजोर ही है; और अगर मैं खड़ा होकर बोलनेकी कोशिश करूँ तो चन्द्र मिनटमें ही मेरा सारा शरीर काँपने लगेगा। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप मुझे बैठकर बोलनेकी इजाजत देंगे। यहाँ मैं आपके सामने एक बहुत महत्त्वपूर्ण सवालपर बोलने बैठा हूँ——ऐसे सवालपर जिसके महत्त्वका अन्दाजा हमने अबतक शायद नहीं लगाया है।

मद्रासके इस मनोरम और प्राचीन समुद्र तटपर मैं इस महत्त्वपूर्ण सवालपर बोलना शुरू करूँ, इससे पहले अवश्य ही आप मुझसे अपेक्षा करेंगे, चाहेंगे कि मैं दिवंगत लोकमान्य तिलक महाराजको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करूँ। (दीर्घ हर्ष-ध्वनि) मेरा आपसे यह अनुरोध है कि आप चुपचाप शान्तिके साथ मेरी बातें सुनें। मैं यहाँ आप सबके दिल-दिमागसे एक अपील करने के लिए आया हूँ और यह काम तबतक असम्भव है जबतक आप मेरी बातोंको पूरी शान्तिके साथ सुननेको तैयार न हों। दिवंगत देशभक्तको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता कि उनके जीवनकी तरह ही उनकी मृत्युसे भी देशमें एक नई शक्तिका संचार हुआ है। मैं उनकी शव-यात्रामें शामिल था। अगर उस अवसरपर आप भी वहाँ उपस्थित होते तो मेरे शब्दोंका ठीक अभिप्राय समझ सकते। श्री तिलक देशके लिए जिये। उनके जीवनका उद्देश्य देशकी स्वतन्त्रता, जिसे वे स्वराज्य कहते थे, प्राप्त करना था और जब वे मृत्यु-शय्यापर पड़े हुए थे, तब भी उन्हें इसी स्वतन्त्रताकी धुन लगी हुई थी। अपने देशभाइयोंपर उनके इतने जबरदस्त प्रभावका यही कारण था; अपने इसी देशप्रेमके कारण उन्हें समाजके कुछ गिने-चुने उच्च वर्गीय लोगोंका ही नहीं, बल्कि अपने लाखों-करोड़ों देशभाइयोंका प्रेम प्राप्त था। उनका जीवन सतत आत्मबलिदानकी एक दीर्घ गाथा ही है। उन्होंने अपना अनुशासन और आत्मबलिदानपूर्ण जीवन १८७९ में प्रारम्भ किया और अन्ततक यही जीवन जीते रहे। यही देशपर उनके असाधारण प्रभावका रहस्य था। वे सिर्फ अपने देशके कल्याणकी इच्छा ही नहीं करते थे बल्कि देशके लिए जीना और देशके लिए मरना भी जानते थे। इसलिये मुझे आशा है कि आजकी इस सन्ध्यामें इस विशाल जनसमुदायसे मैं जो-कुछ कह रहा हूँ, वह विफल नहीं होगा, बल्कि जैसे बलिदानका उदाहरण लोकमान्य

  1. मद्रासके प्रेसिडेंसी कालेजके सामने समुद्र तटपर आयोजित सभामें।