सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५९
भाषण : असहयोगपर

कोई भी मैत्रीपूर्ण समागम सम्भव नहीं है। इसीलिए मैंने असहयोगका यह सुन्दर और लाजवाब रास्ता सुझाया है।

क्या यह असंवैधानिक है?

कुछ लोग मुझसे कहते हैं कि असहयोग असंवैधानिक है। मैं साहसपूर्वक कहूँगा कि यह असंवैधानिक नहीं है। इसके वितरीत, मैं मानता हूँ कि असहयोगका सिद्धान्त न्यायसम्मत है और कर्त्तव्य-कर्म है। यह प्रत्येक मनुष्यका सहज अधिकार है और पूर्णतः संवैधानिक है। ब्रिटिश साम्राज्यके एक बहुत बड़े प्रेमीने कहा है कि ब्रिटिश संविधानके अन्तर्गत कोई भी सफल विद्रोह सर्वथा संवैधानिक है, और उसने अपनी बात की पुष्टि करनेके लिए इतिहाससे ऐसे दृष्टान्त प्रस्तुत किये हैं, जिन्हें मैं अस्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन कोई विद्रोह चाहे सफल हो या असफल, मैं तबतक उसकी संवैधानिकताका दावा नहीं कर सकता जबतक विद्रोहका मतलब वही हो जो साधारण-तथा इस शब्दसे प्रकट होता है——अर्थात् हिंसक तरीकोंसे जबरदस्ती न्याय प्राप्त करना। इसके विपरीत, मैंने अपने देशभाइयोंसे बार-बार कहा है कि हिंसासे यूरोपको चाहे जो सिद्धि मिल जाये, भारतको कोई सिद्धि नहीं मिलनेवाली है। मेरे मित्र, भाई शौकत अली हिंसक तरीकोंमें विश्वास रखते हैं; और अगर ब्रिटिश साम्राज्यके विरुद्ध तलवार उठा सकना उनके बसकी बात होती तो मैं जानता हूँ कि उनमें इतना पुरुषोचित साहस और इतनी सूझबूझ है कि वे ब्रिटिश साम्राज्यके विरुद्ध युद्ध ठान देते। लेकिन चूँकि एक सच्चे सिपाहीकी हैसियतसे वे समझते हैं कि भारतके लिए हिंसक उपाय अपनानेका रास्ता बन्द है, इसलिए उन्होंने मेरी तुच्छ सहायता स्वीकार करते हुए मेरे मतका अनुमोदन किया है, और मुझे वचन दिया है कि जबतक मैं उनके साथ हूँ और जबतक उन्हें इस सिद्धान्तमें विश्वास है तबतक वे किसी अंग्रेजके प्रति या दुनियाके किसी भी आदमीके प्रति अपने मनमें हिंसाकी भावनातक नहीं आने देंगे। और मैं आपको बता दूँ कि वे बातके बहुत धनी साबित हुए हैं और उन्होंने जो वचन दिया उसका वे धार्मिक निष्ठाके साथ पालन करते रहे हैं। स्वयं मैं यहाँ इस बातकी साक्षी भरता हूँ कि अहिंसक असहयोगकी योजनाका वे अक्षरशः पालन करते रहे हैं, और मैं सारे भारतसे इसी अहिंसक असहयोगके मार्गपर चलनेका अनुरोध करता हूँ। मैं कहूँगा कि ब्रिटिश भारतमें हमारे बीच आज शौकत अलीसे अधिक अच्छा सिपाही कोई नहीं है। जब तलवार उठानेका समय आयेगा, और ऐसा समय अगर कभी आया, तो आप देखेंगे कि शौकत अलीने आगे बढ़कर तलवार उठा ली है; किन्तु तब मैं सभ्य संसारसे दूर, भारतके किसी एकान्त वनमें चला जाऊँगा। जिस क्षण भारत तलवारके सिद्धान्तको स्वीकार कर लेगा, उसी क्षण भारतीयके रूपमें मेरे जीवनका अन्त हो जायेगा। मैं ऐसा इसलिए मानता हूँ कि भारतको दुनियाको एक सन्देश देना है, और इसलिए कि मेरे विचारसे हमारे प्राचीन पुरुषोंने सदियोंके अनुभवके बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि इस धरतीके किसी भी मनुष्यके लिए हिंसापर आधारित न्याय सच्ची चीज नहीं है, बल्कि सच्ची चीज आत्मबलिदानपर आधारित न्याय है, यज्ञ और कुरबानीसे प्राप्त किया गया न्याय है। इस सिद्धान्तमें मेरी