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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अटूट आस्था है और अन्ततक रहेगी। इसी कारण मैं आपसे कहता हूँ कि यद्यपि मेरे मित्र वैसे तो हिंसाके सिद्धान्तमें विश्वास रखते हैं और अहिंसाके सिद्धान्तको उन्होंने कमजोरोंके अस्त्रके रूपमें अपनाया है, लेकिन मैं अहिंसाके सिद्धान्तको सबसे शक्तिशाली लोगोंका अस्त्र मानकर उसमें विश्वास करता हूँ। मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति अपने शत्रुके सामने खाली हाथ सीना तानकर खड़ा हो सके और मृत्युको ललकार सके वह सबसे बहादुर सिपाही है। यह तो रहा असहयोगके अहिंसक पक्षके बारेमें। अतः मैं अपने सुविज्ञ देशभाइयोंसे कहना चाहूँगा कि जबतक असहयोग अहिंसक रहता है तबतक उसमें जरा भी असंवैधानिकता नहीं है।

अब मैं आपसे सवाल पूछता हूँ: क्या ब्रिटिश सरकारसे मेरा यह कहना कि मुझे तुम्हारी सेवा करना स्वीकार नहीं, असंवैधानिक है? क्या हमारे आदरणीय अध्यक्ष महोदयके लिए यह असंवैधानिक है कि जो भी उपाधियाँ उन्हें सरकारसे प्राप्त हुई हैं, उन सबको वे पूरे सम्मानके साथ सरकारको लौटा दें? क्या किसी माता-पिताका सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलसे अपने बच्चोंको निकाल लेना असंवैधा- निक है? क्या किसी वकीलके लिए यह कहना असंवैधानिक है कि जबतक तुम्हारी कानूनकी सत्ताका उपयोग मेरे उत्थानके लिए नहीं बल्कि मेरा पतन करनेके लिए किया जा रहा है तबतक मैं तुम्हारी उस सत्ताको बल नहीं दूँगा? क्या किसी सरकारी कर्मचारी या जजके लिए यह कहना असंवैधानिक है कि जो सरकार सारी जनताकी इच्छाका आदर करना नहीं चाहती उसकी सेवा करनेसे मैं इनकार करता हूँ? मैं पूछता हूँ: क्या पुलिसके सिपाही या किसी सैनिकके लिए, जब वह जानता है कि उसे जिस सरकारकी सेवा करनी पड़ रही है वह उसके अपने ही देशभाइयोंको अपमानित और तिरस्कृत करती है, यह असंवैधानिक है कि वह अपना त्यागपत्र दे दे? क्या मेरे लिए यह असंवैधानिक है कि मैं कृषकोंके पास जाकर उनसे कहूँ: आप जो कर सरकारको देते हैं, अगर उन करोंका उपयोग आपके कल्याणके लिए नहीं, बल्कि आपको कमजोर बनानेके लिए होता है, तो आपका कर देना ठीक नहीं है? मेरा विचार है, और मैं आपके सामने भी यही निवेदन करना चाहूँगा कि इसमें जरा भी असंवैधानिकता नहीं है। इससे भी बड़ी बात यह है कि मैंने अपने जीवनमें इनमें से हर एक काम करके देख लिया और किसीने भी उनकी संवैधानिकतामें शंका नहीं उठाई है। खेड़ामें मैं सात लाख कृषकोंके बीच काम कर रहा था। उन सबने कर देना बन्द कर दिया था, और सारा भारत एक स्वरसे मेरे साथ था। किसीने भी ऐसा नहीं सोचा कि यह काम असंवैधानिक है। मैं आपसे निवेदन करूँगा कि असहयोगकी पूरी योजनामें कुछ भी असंवैधानिक नहीं है। मैं कहूँगा कि भारतकी जनताके लिए जो असंवैधानिक और घोर रूपसे असंवैधानिक है वह यह कि एक ऐसे राष्ट्रके अधीन रहते हुए जिसने अपने लिए एक इतने शानदार संविधानकी रचना की है, वह अर्थात् जनता, एक असंवैधानिक सरकारको सहन करे, कमजोरी दिखाये और पेटके बल रेंगे। उसके लिए असंवैधानिक यह है कि उसका जो भी अपमान किया जाये उसे चुपचाप बरदाश्त कर ले। भारतके ७ करोड़ मुसलमानोंके लिए असंवैधानिक यह है कि उनके