——या ब्रिटिश माल ही क्यों, किसी भी अन्य देशके मालका बहिष्कार करनेमें असहमति व्यक्त की है और अब भी करता हूँ। लेकिन वहाँ बहिष्कारका अपना एक अलग मतलब है और यहाँ अलग। अगले वर्ष जिन कौन्सिलोंका गठन होनेवाला है उनके बहिष्कारसे मैं असहमत नहीं हूँ; इतना ही नहीं मैं चाहता हूँ कि उनका बहिष्कार किया जाये। और मैं ऐसा क्यों चाहता हूँ? इसलिए कि जनताको, जनसाधारणको हम नेताओंके स्पष्ट नेतृत्वकी जरूरत है। वे हमसे कोई गोलमोल बात नहीं चाहते। यह जो सुझाव दिया जा रहा है कि हम चुनाव तो लड़ लें, लेकिन उसके बाद वफादारीकी शपथ लेनेसे इनकार कर दें, उससे राष्ट्र हम नेताओंमें अविश्वास करने लगेगा। यह राष्ट्रको स्पष्ट नेतृत्व देना नहीं माना जायेगा। इसलिए मेरे भाइयो, मैं आपसे कहता हूँ कि आप इस जालमें न फँसें। अगर हम चुनाव लड़कर वफादारीकी शपथ न लेनेका तरीका अपनाते हैं तो उसका मतलब होगा, हमने देशको बेच दिया। उसमें कठिनाई हो सकती है और मैं आपके सामने स्वीकार करता हूँ कि मुझे इस बातका भरोसा नहीं है कि अधिकांश भारतीय आज जो घोषणा करके चुनाव लड़ेंगे उसपर कल अमल भी करेंगे। जो लोग ईमानदारीके साथ ऐसा मानते हैं कि हमें चुनाव लड़ना चाहिए और बाद में वफादारीकी शपथ लेने से इनकार कर देना चाहिए, उनसे मैं आज ही कह देना चाहता हूँ कि वे स्वयं अपने लिए और राष्ट्रके लिए जो जाल बिछा रहे हैं उसमें फँसे बिना नहीं रहेंगे। मेरा यही विचार है। मेरे मतमें, अगर हम देशको अधिकसे-अधिक स्पष्ट नेतृत्व देना चाहते हैं और इस महान् राष्ट्रके साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहते तो हमें राष्ट्रके सामने यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि सरकार हमारे प्रति चाहे जितना बड़ा अनुग्रह करना चाहे, हम उसे तबतक नहीं स्वीकार करेंगे जबतक कि उसके साथ एक अन्याय जुड़ा हुआ है, ऐसा दोहरा अन्याय जिसका प्रतिकार अबतक नहीं किया गया है। एक ग्रीक कहावत है कि "ग्रीक लोगोंसे खबरदार रहो, और खासकर तब, जब वे तुम्हारे पास कोई उपहार लेकर आयें।" इसी तरह मैं कहता हूँ, जो मन्त्री इस्लाम और पंजाबके साथ किये गये अन्यायको बराबर कायम रखनेपर तुले हुए हैं, उन मन्त्रियों द्वारा दिया गया कोई भी उपहार हम स्वीकार नहीं कर सकते; क्योंकि यह कोई जाल भी हो सकता है। और उसे स्वीकार करनेका अर्थ, सम्भव है, जालमें फँस जाना सिद्ध हो। इसलिए हमें उनकी ओरसे और भी सावधान रहना चाहिए। अतः मेरी सलाह है कि हमें कौंसिलोंपर रीझना नहीं चाहिए, उनके साथ कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए।
लोग मुझसे कहते हैं कि अगर हम लोग, जो राष्ट्रकी भावनाका प्रतिनिधित्व करते हैं, चुनाव नहीं लड़ते तो नरम दलवाले, जो उसके असली प्रतिनिधि नहीं हैं, चुनाव लड़ेंगे। मैं यह नहीं मानता। मैं नहीं जानता कि नरम दलवाले काहेका प्रतिनिधित्व करते हैं और न यह जानता हूँ कि राष्ट्रवादी लोग काहेका प्रतिनिधित्व करते हैं। मैं जानता हूँ कि नरम दलवालोंमें अच्छे और बुरे, दोनों तरहके लोग हैं। और मैं जानता हूँ कि राष्ट्रवादी दलमें भी अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग हैं। मैं जानता हूँ कि नरम दलके बहुतसे लोग ईमानदारी से ऐसा मानते हैं कि असहयोग करना घोर