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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपराध है। लेकिन मैं उनके प्रति पूरा आदर-भाव रखते हुए उनसे असहमति व्यक्त करता हूँ। उनसे इतना अवश्य कहूँगा कि यदि वे चुनाव लड़ेंगे तो अपने ही बिछाये जालमें फँस जायेंगे। लेकिन इससे मेरी स्थितिमें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर मैं हृदयसे ऐसा मानता हूँ कि मुझे कौंसिलोंमें नहीं जाना चाहिए, तो मुझे कमसे-कम अपने निश्चयपर अटल रहना चाहिए, भले ही मेरे शेष निन्यानवे देशभाई चुनावमें भाग क्यों न लें। यही एक तरीका है जिससे सार्वजनिक काम किया जा सकता है और जनमत तैयार किया जा सकता है। यही एक तरीका है जिससे सुधार सम्भव है और धर्मकी रक्षा हो सकती है। अगर सवाल धार्मिक सम्मानका हो तो चाहे मैं अकेला होऊँ या मेरे साथ बहुतसे लोग हों, मुझे अपने सिद्धान्तपर अटल रहना है। अगर मैं इस प्रयासमें मर भी जाऊँ तो जीवित रहकर अपने सिद्धान्तसे डिग जानेकी अपेक्षा यह मृत्यु अधिक श्रेयस्कर है। मेरे विचारसे कौंसिलोंके लिए चुनाव लड़ना किसीके लिए भी गलत है। अगर हम एक बार यह महसूस कर लेते हैं कि हम सरकारके साथ सहयोग नहीं कर सकते तो हमें ऊपरसे ही इसकी शुरुआत करनी होगी। हम जनताके सामने सहज-स्वाभाविक नेता हैं और हमें यह अधिकार है कि हम राष्ट्रके सामने जाकर उसे असहयोगका सन्देश दें। इसलिए मैं कहूँगा कि चाहे जिस शर्तपर भी हो, कौंसिलोंके लिए चुनाव लड़ना असहयोगके सिद्धान्तसे असंगत है।

वकील और असहयोग

मैंने एक और कठिन कदम उठानेका सुझाव दिया है——यह कि वकीलोंको अपना धन्धा बन्द कर देना चाहिए। यह जानते हुए कि इन वकीलोंके जरिये सरकारने बराबर अपनी शक्ति और सत्ता किस तरह कायम रखी है, मैं इस सम्बन्धमें और कुछ कह भी कैसे सकता हूँ। यह बिलकुल सच है कि हमारा नेतृत्व आज वकील लोग ही कर रहे हैं, वे ही हमारे देशकी लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन जब सरकारके विरुद्ध सीधी कार्रवाई करनेकी बात आती है, सरकारी कामकाज ठप कर देनेका सवाल आता है तो मैं जानता हूँ कि ऐसे मौकोंपर सरकार अपनी प्रतिष्ठा और आत्मसम्मानकी रक्षाके लिए वकीलोंका ही मुँह जोहने लगती है——चाहे वे सरकारसे कितनी ही लड़ाई करते रहे हों। इसलिए अपने वकील भाइयोंसे मैं कहूँगा कि अपना धन्धा बन्द करके सरकारको यह दिखा देना उनका कर्त्तव्य है कि वे अब और अपने पदोंपर नहीं बने रहेंगे; पदोंपर बने रहनेकी बात इसलिए कहता हूँ कि वकील लोग अदालतोंके अवैतनिक अधिकारी माने जाते हैं, और अदालतोंके अनुशासनात्मक अधिकार-क्षेत्रके भीतर आते हैं। अगर वे सरकारके साथ सहयोग बन्द करना चाहते हैं तो उन्हें अपने इन अवैतनिक पदोंपर अब आगे नहीं रहना है। लेकिन तब अमन और कानूनका क्या होगा? हम इन्हीं वकीलोंके जरिये अमन और कानूनकी सत्ता स्थापित करेंगे। हम पंचायती अदालतोंकी स्थापना करके अपने देशभाइयोंको शुद्ध और घरेलू न्याय, स्वदेशी न्याय, प्रदान करेंगे। वकीलोंका अपना धन्धा बन्द करनेका यही मतलब है।