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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है; और अब बहुत बरसोंसे मैं उन्हींकी तरह शारीरिक श्रम करता हुआ उनके बीच रह रहा हूँ। मेरा विश्वास है कि प्रत्येक चेतनाशील प्राणीके जीवनके लिए यह प्रकृतिका विधान है कि वह हाथ-पाँव हिलाकर ही अपना आहार जुटाये। इस प्रकार शारीरिक श्रम करके सिर्फ आप अपने अस्तित्वको बनाये रखनेके नियमका ही पालन कर रहे हैं और आपको अपने जीवनसे असन्तुष्ट होनेका कोई कारण नहीं है। इसके विपरीत मैं तो कहूँगा कि आप जिसके लिए श्रम कर रहे हैं अपनेको उस राष्ट्रका न्यासी मानें। राष्ट्र करोड़पतियों और पूँजीपतियोंके बगैर चल सकता है परन्तु श्रमिकोंके बिना नहीं। आपके और मेरे श्रममें एक बुनियादी अन्तर है। आप किसी औरके लिए श्रम कर रहे हैं। साधारण स्थितिमें शायद यह आशा की जा सकती है कि हर व्यक्ति स्वयं ही मालिक हो और स्वयं ही मजदूर भी। मैं मानता हूँ कि मैं अपनी इच्छासे श्रम करता हूँ। इसलिए अपना मालिक मैं ही हूँ। स्वाभाविक रूपसे तो हम सबको अपना-अपना मालिक होना चाहिए। परन्तु इस अवस्थातक एक दिनमें नहीं पहुँचा जा सकता। अतएव दूसरोंके लिए काम करते हुए मजदूर किस तरहका आचरण करें यह आपके लिए एक बहुत विचारणीय प्रश्न बन जाता है। जिस प्रकार श्रम करनेमें कोई शर्मकी बात नहीं है, उसी प्रकार दूसरोंके लिए श्रम करनेमें भी शर्मकी कोई बात नहीं है। अलबत्ता मालिक और नौकरके बीचके सही सम्बन्धोंको समझ लेना जरूरी हो जाता है। आपके कर्त्तव्य क्या है? आपके उत्तरदायित्व क्या हैं? और आपके अधिकार क्या हैं? यह समझना काफी आसान है कि अपने श्रमके बदले पैसा पाना आपका अधिकार है; और यह समझना भी उतना ही आसान है कि जो मजूरी आप पाते हैं उसके बदलेमें अपनी पूरी योग्यता-भर काम करना आपका कर्त्तव्य है। मैंने ज्यादातर, सभी जगह श्रमिकोंको अपना उत्तरदायित्व अच्छी तरह और ईमानदारी से निभाते देखा है। फिर श्रमिकोंके प्रति मालिकोंका भी कुछ कर्त्तव्य है; इसलिए श्रमिकोंको यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि श्रमिक किस हदतक मालिकोंपर अपनी इच्छा आरोपित कर सकते हैं। यदि ऐसा लगे कि हमें पर्याप्त वेतन और आवासकी सुविधा प्राप्त नहीं है तो देखना चाहिए कि उनके लिए माँगें किस तरह पेश करें। यह कौन निश्चित करेगा कि मजदूरोंके लिए जरूरी आराम और जरूरी वेतन क्या है? निस्सन्देह, सबसे अच्छी बात तो यही है कि स्वयं आप, श्रमिक लोग अपने अधिकार पहचानें और उन अधिकारोंको अमलमें लानेका उपाय जानें और उनपर अमल भी करें। इसके लिए आपको थोड़ीसी प्राथमिक शिक्षा और प्रशिक्षणकी आवश्यकता है। आप देशके विभिन्न भागोंसे सिमटकर केन्द्रमें आ पहुँचे हैं और काफी संख्यामें यहाँ इकट्ठे हैं। शायद परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थीं कि आप खेती या पहलेके अपने-अपने धन्धोंमें पर्याप्त पैदा नहीं कर सके और आपने किसी एक मालिकके अधीन मजदूरी करना स्वीकार कर लिया। परन्तु बादमें आपने देखा कि आपको यहाँ भी आपकी जरूरतके लायक न पैसा मिल रहा है, न रहनेकी जगह और अब आपकी समझमें नहीं आ रहा कि अपना काम किस तरह चलाया जाये। अतएव मैं श्री वाडियासे तथा अन्य उन लोगोंसे जो आपका नेतृत्व कर रहे हैं, आपको सलाह दे रहे हैं, कहना चाहता हूँ कि उनका