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भाषण : श्रमिकोंके अधिकारों तथा कर्त्तव्योंपर

प्रथम कर्त्तव्य आपको अक्षर-ज्ञान देना नहीं वरन् मानवीय व्यापारों और मानवीय सम्बन्धोंका ज्ञान देना है। मैं यह सुझाव बड़े आदर और नम्रताके साथ दे रहा हूँ। जहाँतक मैं भारतमें श्रमका सर्वेक्षण कर पाया हूँ तथा दक्षिण आफ्रिकामें मजदूरीकी शर्तोंके बारेमें मैंने जो कटु और दीर्घ अनुभव प्राप्त किया है उनके आधारपर मैंने देखा यह है कि ज्यादातर नेतागण मजदूरोंको पढ़ना-लिखना तथा मामूली हिसाब- किताबका ज्ञान कराना पर्याप्त मानते हैं। बेशक वह एक जरूरी बात है। परन्तु उससे भी पहले आपको अपने अधिकारोंका सही ज्ञान और तदनुसार चल सकनेका उपाय मालूम होना चाहिए। विभिन्न हड़तालोंका पुरस्कर्त्ता होने के नाते मैं यह समझ गया हूँ कि यह बुनियादी शिक्षा मजदूरोंको एक दिनमें दी जा सकती है। अब मैं हड़तालके विषयमें कुछ कहूँगा।

आज सारे संसारमें हड़तालें की जाती हैं। छोटीसे-छोटी बातको लेकर मजदूर हड़ताल करने लगते हैं। पिछले छः महीनोंका मेरा निजी अनुभव है कि कई हड़तालोंसे मजदूरोंको लाभके बजाय नुकसान पहुँचा है। जहाँतक सम्भव था मैंने बम्बईकी हड़ताल, टाटा आइरन वर्क्सकी हड़ताल, गोरखपुरमें दो बार हड़ताल और पंजाबकी प्रसिद्ध रेलवे मजदूरोंकी हड़तालका अध्ययन किया है। इन चारों हड़तालोंमें मैं थोड़ा- बहुत मजदूरोंके सम्पर्कमें रहा हूँ और जो-कुछ मैं बताने जा रहा हूँ, वह मुझे मजदूरोंसे ही मालूम हुआ है। ये सभी हड़तालें, कुछ हदतक असफल रहीं। मजदूर पूरी तरह अपने मुद्दे स्पष्ट नहीं कर पाये। इसका क्या कारण था? उनका नेतृत्व ठीकसे नहीं किया गया था। मैं चाहता हूँ कि आप नेताओंके इन दो वर्गोंका अन्तर पहचानें; एक तो वे जो आपमें से हैं और दूसरे वे जो समयपर आपके बीच के इन नेताओंको सलाह देते हैं; वे स्वयं मजदूर नहीं हैं परन्तु मजदूरोंसे सहानुभूति रखते हैं या उनसे मजदूरोंके प्रति सहानुभूति रखनेकी आशा की जाती है। मुझे आपको यह बतानेकी जरूरत नहीं कि जबतक आपका आपसमें, अपने नेताओंसे तथा जो आपसे ऊपरके लोग हैं उनसे सम्पर्क नहीं है और जबतक विचारोंका आदान-प्रदान पूर्णरूपसे नहीं होता तबतक असफलता ही हाथ आयेगी। इन चारों हड़तालोंमें परस्पर पूरा सम्पर्क नहीं था। असफलताका एक और ठोस कारण मैंने यह पाया है कि मजदूर अपने निर्वाहके लिए अपने संघोंसे आर्थिक मददकी आशा करते थे। जबतक मजदूर अपने संघके कोषपर निर्भर रहता है तबतक वह अनिश्चित समयतक हड़ताल जारी नहीं रख सकता। कोई भी हड़ताल जो अनिश्चित कालतक जारी नहीं रखी जा सकती, पूरी तरह सफल नहीं हो सकती। मैंने जो हड़तालें करवाईं उन सभीमें एक अनिवार्य नियम मैंने यह रखा कि मजदूर अपने निर्वाहका सहारा स्वयं खोजें। इसीमें सफलताका रहस्य निहित है। आपकी शिक्षाका उपकार भी इसी में है। आपको इस बातका इत्मीनान रहना चाहिए कि यदि आप एक जगह काम करके कुछ मजदूरी पा सकते हैं तो आपका काम वही मजदूरी कहीं और पा सकने योग्य भी होना चाहिए। इसलिए हड़तालियों से निठल्ले रहकर सफलता पानेकी आशा नहीं की जा सकती। आपकी माँगें उचित होनी चाहिए और जिन लोगोंको आप गद्दार वगैरा कहते हैं, उनपर भी कोई दबाव