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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२०९

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भाषण : कुम्भकोणममें असहयोगपर

समृद्धिकी शुभकामना करते हुए मैं आशा करता हूँ कि आप देशके अच्छे नागरिकोंकी तरह अपना कर्त्तव्य निबाहेंगे।

[अंग्रेजीसे]


हिन्दू, १६-८-१९२०


स्पीचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ महात्मा गांधी, (तृतीय संस्करण), पृष्ठ ७८४-८८
 

१००. भाषण : कुम्भकोणममें असहयोगपर

१६ अगस्त, १९२०

सर्वश्री गांधी और शौकत अली क्रमशः अंग्रेजी और उर्दूमें बोले। उनके भाषणोंका वाक्यशः तमिलमें अनुवाद किया गया। कुम्भकोणमकी उस सार्वजनिक सभामें उपस्थित विशाल श्रोतृसमूहकी ओर मुखातिब होकर अपने स्वागतमें किये गये अभिनन्दनका उत्तर देते हुए महात्मा गांधीने कहा कि मुझे दुःख है कि मेरा तमिलका ज्ञान पर्याप्त नहीं है, लेकिन साथ ही मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि आप राष्ट्रीय सम्पर्ककी भाषाके रूपमें हिन्दी या उर्दू अवश्य सीखें, क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय प्रगतिकी एक अनिवार्य शर्त है। क्या ही अच्छा होता अगर इन अभिनन्दनोंमें से अंग्रेजीके बजाय कुछ तमिलमें प्रस्तुत किये गये होते। महात्मा गांधीने लोगोंसे आगे कहा कि याद रखिये, पर्याप्त धनके बिना खिलाफत आन्दोलन नहीं चल सकता और यद्यपि पैसेका अपने-आपमें न तो कोई खास महत्त्व है और न वह आत्म-बलिदानके समान बड़ी चीज ही है। फिर भी मैं आप सबसे, और विशेषकर उन लोगोंसे जो असहयोग आन्दोलनमें सक्रिय रूपसे भाग नहीं ले सकते, अनुरोध करूँगा कि खिलाफत-कोषमें अपनी शक्ति-भर चन्दा दें। श्री गांधीने कर्मकी आवश्यकतापर जोर देते हुए कहा कि भाषण, बहस-मुबाहिसे और प्रदर्शनों आदिका समय बीत गया है और संगठित रूपसे निरन्तर और अथक काम करनेका समय आ गया है। लोगोंको सिर्फ कामकी ही धुन होनी चाहिए। खिलाफत तथा पंजाबके सवालोंने वर्तमान सरकारको दुर्भावनापूर्ण, अनैतिक और अन्याषी साबित कर दिया है और अब लोगोंका, यह परम कर्त्तव्य हो गया है, आपमें से प्रत्येकका यह दायित्व हो गया है कि ऐसी सरकारसे सहयोग करना बन्द कर दें। टर्कीके सम्बन्धमें जो शर्तें रखी गई हैं वे यदि सचमुच इस्लामके लिए अपमानजनक हैं तो हर मुसलमानका यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वह हर प्रकारके असहयोगके लिए तैयार हो जाये। भारतमाताकी सन्तान होनेके नाते मुसलमानोंको हिन्दू भाई समझते हैं और वे अपने धर्मके प्रति सच्चे रहना चाहते हैं तथा अपने आत्म-सम्मान और अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करना चाहते हैं। इसलिए उन्हें भी मेरे बतलाये तरीकेसे अहिंसक असहयोग करना चाहिए। स्मरण-पत्र आदि भेजकर आन्दो-