पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यहाँ सभाके एक भागमें कुछ हलचल-सी हुई और कुछ क्षण बाद महात्माजीने अपना भाषण पुनः शुरू किया।

तो असहयोग और सहयोगका हमें अच्छा खासा पदार्थ-पाठ मिल गया। (हँसी) असहयोगका पाठ हमें तब मिला जब वहाँ कुछ नौजवानोंने लड़ाई-झगड़ा शुरू किया। असहयोग एक बड़ा खतरनाक हथियार है, मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। अगर एक व्यक्ति भी निश्चय कर ले तो वह पूरी सभामें गड़बड़ी पैदा कर सकता है (हँसी) और हमें अभी यह प्रत्यक्ष देखनेको मिला (हँसी)। लेकिन हमारा असहयोग अहिंसक है। उसमें अगर उसकी बुनियादी शर्तोका पालन किया जाये तो कोई दोष उत्पन्न नहीं हो सकता। अगर असहयोग असफल होता है तो इसलिए नहीं कि खुद उसमें किसी शक्तिका अभाव है। वह असफल होगा तो इसलिए कि लोगोंने उसमें हाथ नहीं बँटाया; या इसलिए कि लोगोंने उसके लिए सामान्य सिद्धान्तोंको अच्छी तरह ग्रहण नहीं किया। अभी आपने सहयोगका भी प्रत्यक्ष दृश्य देखा (हँसी); वह भारी कुर्सी कितने ही लोगोंके सिरपर से गुजरती हुई दूर चली गई क्योंकि तमाम लोगोंने उसमें हाथ लगाया। इस तरह वह भारी गुम्बदनुमा चीज भी स्त्री, पुरुष और बच्चोंके सहयोगसे हमारी आँखोंसे ओझल हो गई। हर व्यक्ति यह मानता और जानता है कि यह सरकार अपने शस्त्रोंकी शक्तिके बलपर नहीं बल्कि जनताके सहयोगके बल-पर टिकी हुई है। (हर्ष ध्वनि) ऐसा हर व्यक्ति जिसमें तनिक भी तर्क-बुद्धि है आपको बतायेगा कि इसका विलोम भी उतना ही सच है (हँसी); यानी यह सरकार जिस सहयोगके सहारे टिकी हुई है यदि वह सहयोग बन्द हो जाये तो वह टिक नहीं सकती। इसमें सन्देह नहीं कि यह काम जरा कठिन है। अभीतक तो हमने अपनी वाणीका 'बलिदान' करना——यानी भाषण देना ही सीखा है। अब हमें अपनी सुख-सुविधाएँ और माल-मिल्कियतका बलिदान करना भी सीखना चाहिए और यह चीज हमें अंग्रेजोंसे ही सीखती है। जिन लोगोंने इंग्लैंडका इतिहास पढ़ा है वे सब जानते हैं कि हम इस समय एक ऐसे राष्ट्रके विरुद्ध जूझ रहे हैं जिसमें बलिदान करनेकी बहुत बड़ी क्षमता है। हम तीस करोड़ भारतीय जबतक पर्याप्त रूपसे बलिदान नहीं करते तबतक हम दुनियामें न कुछ नाम कमा सकते हैं और न अपना खोया हुआ आत्मसम्मान ही प्राप्त कर सकते हैं।

हमारे मित्रने ब्रिटिश या विदेशी सामानके बहिष्कारका सुझाव दिया है। सभी विदेशी वस्तुओंके बहिष्कारका ही दूसरा नाम स्वदेशी है। उनका विचार है कि सब विदेशी चीजोंके बहिष्कारको ज्यादा समर्थन प्राप्त होगा। अपने पिछले अनेक वर्षोंके अनुभवसे तथा व्यापारी-वर्गके निकट सम्पर्कजन्य ज्ञानसे, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विदेशी वस्तुओंका बहिष्कार अथवा केवल ब्रिटिश वस्तुओंका बहिष्कार मेरे सुझाए हुए अन्य कार्यकी अपेक्षा अधिक दुष्कर है। मैंने जो अन्य कार्य सुझाये हैं उनमें से किसीमें धन-त्यागकी कोई आवश्यकता नहीं है। वे काम तो किये ही जाने हैं। ब्रिटिश या विदेशी वस्तुओंके बहिष्कारका अर्थ अपने बड़े-बड़े व्यापारियोंसे करोड़ों रुपये त्याग देनेके लिए कहना है। यह हमें करना तो है ही, परन्तु यह बहुत ही धीरे