होनेवाला काम है। मैं जानता हूँ, यहाँ जो अन्य काम मैंने सुझाये हैं उनके बारेमें भी यही कहा जा सकता है; परन्तु वस्तुओंका बहिष्कार एक प्रकारका दण्ड देना समझा जाता है और दण्ड तभी प्रभावशाली होता है जब विरोधीको उससे कष्ट पहुँचे। मैंने जो सुझाया है वह दण्ड नहीं वरन् एक पवित्र कर्त्तव्यका पालन है, वह आत्मनिग्रहकी दिशामें अपनी ही इच्छासे उठाया हुआ कदम है और इसलिए तुरन्त प्रभावकारी होता है फिर चाहे उसे एक ही आदमी क्यों न उठाये। और एक आदमी द्वारा भी अपने कर्त्तव्यका पूर्ण पालन करनेसे राष्ट्रकी स्वतन्त्रताकी नींव पड़ती है।
मैं अपने राष्ट्र तथा अपने मुसलमान भाइयोंको यह बात समझा देनेके लिए अत्यन्त उत्सुक हूँ कि यदि वे राष्ट्रीय सम्मान या इस्लामके सम्मानकी रक्षा करना चाहते हैं तो वे निःसन्देह ऐसा कर सकते हैं किन्तु दण्ड देकर या लगातार दण्ड देते हुए नहीं वरन् पर्याप्त आत्मबलिदानके द्वारा। मैं अपने सभी नेताओंके बारेमें बहुत आदरपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहता हूँ। किन्तु उन्हें आदर देनेका यह अर्थ नहीं कि हम उस आदरको देशकी उन्नतिमें बाधा बनने दें। मैं बहुत बेचैन हूँ और चाहता हूँ कि इस अत्यन्त नाजुक समयमें देश अपना रास्ता चुने। इसमें सन्देह नहीं कि ब्रिटिश राष्ट्रकी राजसत्ताको शस्त्रबलसे छीननेका विचार हम नहीं कर सकते। आज तो हम यहीं कर सकते हैं कि आबाल-वृद्ध, वनिता, जिनको यह पूरा विश्वास है कि एकमात्र रास्ता कांग्रेसके फैसलेका या किसी अन्य आदेशका इन्तजार न करके अन्तरात्माके आदेशपर चलना है वे या तो खिलाफत और पंजाबके दुहरे अन्यायको झेलें, तौहीन सहें, राष्ट्रके नपुंसकीकरणको स्वीकार कर लें या त्याग द्वारा राष्ट्रके सम्मानकी रक्षा करें। जबतक राष्ट्र फैसला न करे तबतक हम और आप प्रतीक्षा करनेके लिए बाध्य नहीं हैं। यदि हमें इन बातोंके सही होनेका विश्वास है तो हमें आज ही फैसला कर लेना चाहिए। इसलिए त्रिचिनापल्लीके नागरिको, पूरा भारत क्या करता है आप इसका इन्तजार न करें; आप स्वयं असहयोगका कदम उठा सकते हैं और यदि अबतक इस दिशामें कुछ नहीं किया है तो कलसे ही तदनुसार कार्य आरम्भ कर दें। कल ही आप अपने सब खिताब वापस कर सकते हैं; (हर्षध्वनि) सभी वकील कलसे ही वकालत छोड़ सकते हैं; जो लोग किसी अन्य जरियेसे जीवन-निर्वाह नहीं कर सकते, अगर वे अपना पूरा समय और ध्यान समितिके काममें लगायें तो खिलाफत समिति उनकी मदद आसानीसे कर सकती है और यदि वकील मेहरबानी करके वकालत त्याग देते हैं, तो आप देखेंगे कि निजी हस्तक्षेप द्वारा अपने झगड़े निपटा लेनेमें आपको कोई कठिनाई नहीं होगी। यदि आपमें इच्छा और संकल्प हो तो आप कलसे ही अपने स्कूलोंका राष्ट्रीयकरण कर सकते हैं। मैं जानता हूँ कि आपमें से थोड़ लोग ही यदि ऐसा करना चाहें तो ये कठिन काम हैं। किन्तु जब इस बड़ी सभामें उपस्थित सब लोग एकमत हो जायें तो यह इतना आसान है जितना कि हमारा यहाँ बैठना; या जितना आसान आपके लिए उस कुर्सीको वहाँ ले जाना था, उतना ही आसान इस योजनापर कलसे अमल करना है बशर्ते कि आप एकमत