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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२२१

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भाषण : कालीकटमें

पागलपनकी कैसी कीमत वसूल की गई? मेरा निवेदन है कि किसी भी हालतमें कोई भी सभ्य सरकार जनतासे ऐसी कीमत वसूल न करती जैसी इस सरकारने की। जिन्हें अदालतोंकी विडम्बना कहना चाहिए, ऐसी अदालतोंमें निर्दोष व्यक्तियोंके मुकदमे सुने गये और उन्हें आजीवन कारावासकी सजा दे दी गई। बादमें दी गई माफीको मैं कोई महत्त्व नहीं देता। निर्दोष, निशस्त्र लोग, जो इकट्ठे होनेका सबब भी नहीं जानते थे, बिना आगाह किये बेरहमीसे कत्ल कर दिये गये। मनियाँवालामें उद्धत अधिकारियोंने औरतोंका शीलभंग किया; इन औरतोंने किसीका क्या बिगाड़ा था? मैं चाहता हूँ कि उनके शीलभंगसे मेरा क्या प्रयोजन है, उसे आप समझ लें। एक अधिकारीने अपनी छड़ीसे उनके घूँघट उठा दिये। लोगोंको पेटके बल रेंगनेपर मजबूर किया गया। इन व्यक्तियोंको बादमें हंटर समितिने सर्वथा निर्दोष घोषित किया। और इन सर्वथा अनुपयुक्त तमाम अन्यायोंका प्रतिकार नहीं किया गया। मैं मानता हूँ कि आगजनी और हत्याके अपराधियोंको सजा देना भारत सरकारका कर्त्तव्य था। किन्तु उसका यह और भी बड़ा कर्त्तव्य था कि वह उन अधिकारियोंको सजा देती जिन्होंने निर्दोष व्यक्तियोंका अपमान और दमन किया था। इसके विपरीत देखते हम यह हैं कि सरकारकी इन ज्यादतियोंका, इस सरकारी आतंकवादका लार्ड सभाकी बहसमें समर्थन किया गया। इस्लाम और पंजाबके पौरुषके प्रति किये गये इसी दोहरे अन्यायको हम असहयोगसे धो देना चाहते हैं। हमने प्रार्थना की, आवेदन दिये, आन्दोलन किये और प्रस्ताव पास किये। श्री मुहम्मद अली अपने मित्रों सहित ब्रिटिश जनतासे भेंट कर रहे हैं। उन्होंने इस्लामकी बात दृढ़ताके साथ प्रस्तुत की है परन्तु उनकी बातपर कान नहीं दिया गया। इसके बारेमें उनका ऐसा कहना है कि फ्रांस और इटलीने इस्लामकी शिकायतके प्रति बड़ी सहानुभूति दिखाई; किन्तु ब्रिटिश मन्त्रियोंने कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। इससे जाहिर हो जाता है कि ब्रिटिश मन्त्री और भारतके वर्तमान पदाधिकारी जनताके साथ किस तरह पेश आना चाहते हैं। उनमें उसके प्रति कोई सद्भाव नहीं है, भारतकी जनताको सन्तुष्ट करनेकी उनकी कोई इच्छा नहीं है। इसलिए भारतके लोगोंको इस दोहरे अन्यायका कुछ उपाय तो करना ही चाहिए। अन्यायके विरुद्ध पश्चिमका तरीका हिंसासे काम लेनेका है। पश्चिमके लोगों ने जहाँ-कहीं, सही या गलत, किसी अन्यायको महसूस किया वहाँ विद्रोह करके रक्त बहाया। आधा भारत हिंसाके उपायमें विश्वास नहीं करता। यह मैंने भारतके वाइसरायको लिखे अपने पत्रमें भी कहा है। शेष आधा हिंसा कर पाने लायक नहीं, दुर्बल है। परन्तु समस्त भारतको इस अन्यायसे गहरा आघात पहुँचा है और वह उद्वेलित है, और इसी कारण मैंने भारतकी जनताको असहयोगका उपाय सुझाया है, जिसे मैं सर्वथा निर्दोषपूर्ण, संवैधानिक, और साथ ही प्रभावशाली मानता हूँ। यह ऐसा उपाय है जो यदि ठीक तरहसे अपनाया जाये तो विजय निश्चित है। फिर यह आत्म-बलि-दानका अति प्राचीन उपाय है। क्या भारतके वे मुसलमान, जो इस्लामके प्रति घोर अन्याय महसूस करते हैं, पर्याप्त आत्म-बलिदानके लिए तैयार हैं? विश्वके समस्त धर्म- शास्त्र हमें उपदेश देते हैं कि न्याय और अन्यायमें कोई समझौता नहीं हो सकता।

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