पहुँचा रही है और सारे राष्ट्रके आत्म-सम्मानपर प्रहार कर रही है। खिलाफत-सम्बन्धी अन्यायसे भारतके सभी मुसलमान व्यथित हैं और पंजाबपर जो जुल्म ढाया गया, उसने तो मानो भारतके पौरुषको लगभग कुचल कर ही रख दिया। क्या हम इस विपत्तिके सामने कमजोरी दिखायेंगे या कि अपनी समस्त शक्तिसे उसका मुकाबला करेंगे? इन दोनों अन्यायोंके निराकरणका उपाय असहयोगका आध्यात्मिक उपचार है। इसे मैं आध्यात्मिक अस्त्र इसलिए कहता हूँ कि यह हमसे अनुशासन और बलिदानकी अपेक्षा रखता है। इसकी माँग है कि और लोग क्या करते हैं इसकी चिन्ता किये बिना प्रत्येक व्यक्ति बलिदान करे। और इस कर्त्तव्य-पालनके पीछे जो आश्वासन जुड़ा हुआ है, मैंने जितने धर्मोका अध्ययन किया है वे सब जिस बातका आश्वासन दिलाते हैं, वह बहुत ही निश्चित और असन्दिग्ध है। वह आश्वासन इस बातका है कि दुनियामें आजतक ऐसा कभी नहीं हुआ कि बलिदानी व्यक्तिको उसके विशुद्ध बलिदानका पूर्ण और समुचित पुरस्कार न मिला हो। यह एक आध्यात्मिक अस्त्र है क्योंकि इसके लिए अपनी अन्तरात्माके अलावा और किसीका आदेश लेनेकी जरूरत नहीं है। यह आध्यात्मिक अस्त्र इस मानेमें है कि यह किसी भी राष्ट्रके सर्वोत्तम गुणोंको निखारकर रख देता है और अगर एक भी व्यक्ति इस अस्त्रको अपनाता है तो यह उसके व्यक्तिगत सम्मानकी रक्षा करता है, और अगर समस्त राष्ट्र इसका सहारा लेता है तो यह राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षा करता है। और यही कारण है कि मैंने अपने बहुतसे प्रतिष्ठित देशभाइयों और नेताओंकी रायके विपरीत असहयोगको एक अचूक और सर्वथा व्यवहार्य अस्त्र बताया है। यह अचूक और व्यवहार्य इसलिए है कि यह व्यक्तिकी अन्तरात्माकी अपेक्षाओंको पूरा करता है। आज मौलाना शौकत अली जो-कुछ कर रहे हैं, ईश्वर उनसे उससे अधिककी अपेक्षा नहीं कर सकता, नहीं करेगा; क्योंकि उन्होंने उस ईश्वरकी सेवामें जिसे वे मानवमात्रका सर्वशक्तिमान् नियन्ता मानते हैं अपना सब-कुछ अर्पित कर दिया है। हम मंगलौरके नागरिकोंके सामने खड़े होकर उनसे कहते हैं कि हम उनके चरणोंपर जो बहुमूल्य उपहार रख रहे हैं उसे वे या तो स्वीकार करें या ठुकरा दें। और मेरा सन्देश सुननेके बाद अगर आप इस निष्कर्षपर पहुँचें कि इस्लाम और भारतके सम्मानकी रक्षाके लिए आपके पास असहयोगके अलावा और कोई उपाय नहीं है तो आप इस उपायको स्वीकार कर लेंगे। मैं आपसे कहूँगा कि आपके सामने जो बहुत सारे भ्रामक सवाल रखे जाते हैं, उनसे आप चक्करमें न पड़ें और न इस कारणसे अपने उद्देश्यसे ही विचलित हों कि इस सवालपर आपके नेताओंमें मतभेद है। आजतक धरतीपर जितने भी आध्यात्मिक या अन्य प्रकारके संघर्ष किये गये हैं उन सभीके साथ ऐसी कुछ बातें तो जुड़ी ही रही हैं। इसका कारण यह है कि ऐसा अवसर कुछ इतने आकस्मिक रूपसे आ जाता है कि अगर हमारे हृदयका स्वर अनुकूल न हो तो मन उलझनमें पड़ जाता है। और अगर हम सभी लोगोंके मस्तिष्क और हृदयमें पूरा तादात्म्य होता तब तो हम इस धरतीपर सर्वांगपूर्ण मनुष्य होते। लेकिन आपमें से जो लोग अखबारोंमें इस विषयको लेकर छिड़े विवादको पढ़ रहे होंगे, वे देखेंगे कि
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