१०८. भाषण : लॉ कालेज, मद्रासके विद्यार्थियोंके समक्ष
२१ अगस्त, १९२०
श्री गांधीने अपना भाषण शुरू करते हुए कहा कि मैं विद्यार्थियोंसे दिल खोलकर बातचीत करना चाहता हूँ और मैं आपको बतलाना चाहता हूँ कि हम दो आदमी——मैं और मौलाना शौकत अली——इस सवालपर कंधेसे-कंधा मिलाकर इस संघर्षमें भाग कैसे ले पा रहे हैं, जब कि जीवनके कुछ मूलभूत सिद्धान्तोंके बारेमें हम दोनोंके विचार बिलकुल विरोधी हैं, विशेषकर एक मूलभूत सिद्धान्तके बारेमें मेरे लिए अहिंसा और शौकत अलीके लिए तलवार जीवनका अन्तिम और सर्वाधिक शक्तिशाली तत्त्व है। उन्होंने कहा कि इस सिलसिलेमें एक ईसाई महिलाका जो पत्र आज सुबह ही मिला है उसे पढ़कर सुना देना सर्वोत्तम होगा। इसमें अन्य बातोंके साथ यह भी लिखा है कि असहयोगकी आवश्यकताके बारेमें मद्रासके मेरे भाषणसे उनको पूरा विश्वास हो गया है कि असहयोग आवश्यक है और हालाँकि उन्हें टर्कीके साथ कोई विशेष सहानुभूति नहीं है फिर भी वे पूरी तरह यह महसूस करती हैं कि इस्लामके सम्मान और उसकी प्रतिष्ठाके लिए ही चलाये जानेवाले इस संघर्षमें केवल हिन्दुओंको ही नहीं वरन् ईसाइयोंको भी मुसलमानोंकी पूरी-पूरी सहायता करनी चाहिए; यह मामला अन्तःकरणका है और ऐसे मामलोंमें किसी भी राष्ट्रको अपना निर्णय सत्ताके इशारेपर छोड़ देनेके लिए नहीं कहा जाना चाहिए। उक्त महिलाने विधान परिषदों तथा सरकारी और सरकारी सहायता-प्राप्त स्कूलोंके बहिष्कार और असहयोगके पहले मुद्देके सिलसिलेमें उठाये जानेवाले दूसरे कदमोंसे भी सहमति प्रकट की है। श्री गांधीने श्रोताओंको पत्र पढ़कर सुनानेके बाद कहा कि यह एक शानदार पत्र है। मैंने असहयोग या अपने मद्रासके भाषणके प्रमाणपत्रके रूपमें इसको पढ़कर नहीं सुनाया है, यह तो एक ऐसे निष्पक्ष ईसाईकी भावना है जो संघर्षकी धर्म-मूलक भावनासे पूर्णतः सहमत हुआ है और जो सोचता है कि यह एक ऐसा संघर्ष है जिसमें हिन्दुओं और ईसाइयोंको मुसलमानोंसे किसी कदर कम हिस्सा नहीं लेना चाहिए।
इसके बाद श्री गांधीने विधान परिषद् में वाइसरायके उद्घाटन भाषणपर टिप्पणी करते हुए कहा कि वाइसराय महोदयने असहयोगके सम्बन्धमें जो-कुछ कहा है उसमें उनकी यह स्वीकारोक्ति अवश्य निहित है कि उससे अधिकारियोंने इतना सबक तो सीख लिया है कि किसी आन्दोलनसे घबराकर जल्दीमें हिंसात्मक कार्रवाई कर बैठना बुद्धिमानी नहीं है; उसकी तो खिल्ली उड़ाई जानी चाहिए ताकि वह अपने-आप समाप्त हो जाये। इंग्लैंडमें अंग्रेज सरकार ऐसा ही करती है, किन्तु भारतकी जनताको चाहिए कि खिल्ली उड़ानेकी कोशिश करनेके बजाय सरकारको सही बात मानने-