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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर विवश कर दे। लॉर्ड महोदयने कहा कि स्वयं वकील रह चुकनके नाते वे सदस्योंको [आन्दोलनसे] अलग रहनेकी सलाह देंगे। किन्तु यह सलाह सदस्योंका जरा भी भला नहीं कर सकती। एक ओर वाइसराय हैं जो वकीलोंसे कहते हैं कि अदालतोंसे जैसे बने चिपके रहो और दूसरी ओर मैं हूँ। मैं खुद भी वकील रहा हूँ, मैंने वर्षोंतक वकालत करके छोड़ी है, मैं जनताके बीच जनताके लिए ही पैदा हुआ हूँ। मैं वकीलोंसे कहता हूँ कि अदालतोंका बहिष्कार करो। अब फैसला वकीलोंको करना है। श्री गांधीने आगे कहा कि संसार-भरमें सरकारें अदालतोंके जरिये ही लोगोंकी नकेल अपने हाथमें पकड़े हुए हैं। पहलेके युगोंमें अनेक बुराइयोंके बावजूद इन अदालतोंकी एक यह उपयोगिता तो थी कि उन्होंने अराजकता नहीं फैलने दी और तथाकथित व्यवस्था कायम रखी। आजके युगमें तो अदालतें खालिस बुराई बनकर रह गई हैं। मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं है कि यदि वकील अदालतोंका बहिष्कार कर दें तो इससे सरकारका एक हाथ ही टूट जायेगा और उसका बल समाप्त हो जायेगा। यदि देशमें जन-आन्दोलनका नेतृत्व करनेवाले वकील स्वयं त्याग करनेको तैयार नहीं होंगे तो मैं इसकी सलाह लोगों को देनेका साहस कैसे करूँगा। यदि वकील त्याग करनेको तैयार नहीं हैं तो जनतापर हमारी अपीलोंका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और तब तो हमें लोगोंसे यही कहना पड़ेगा कि वे इस प्रकारके संघर्षमें न पड़ें। अर्थात् हमें अपने शब्द वापस लेने पड़ेंगे और कहना पड़ेगा कि हम अबतक जिस अन्यायकी बात कर रहे थे वह इतना घोर नहीं है और न उसके कारण हमारे हृदयोंमें इतनी अधिक पीड़ा ही है कि प्रचार-आन्दोलनके रूढ़िगत तरीकोंके अतिरिक्त कुछ और करनेको कहा जाये। हो सकता है कि ब्रिटिश सरकार-जैसी या उससे भी ज्यादा नृशंस सरकारें संसार में मौजूद हों, परन्तु भारतीयोंके लिए तो वही सबसे ज्यादा नृशंस है। वह दिनों-दिन पतनके गढ़में गिरती जा रही है। वाइसरायकी घोषणासे हृदयको बड़ा धक्का लगा है। वाइसरायने कहा है कि अब पंजाबके मामलेपर विचार नहीं होगा। जो सरकार इस तरह जलेपर नमक छिड़क सकती है, उससे मिला पुरस्कार कितना ही मूल्यवान क्यों न हो स्वीकार नहीं किया जा सकता। पहले उसे अपने कियेपर पश्चाताप करना होगा। सरकार शायद खिलाफत आन्दोलनके बारेमें यह सोचती हो कि धीरे-धीरे वह अपने-आप मर जायेगा; किन्तु भारतीयोंके मरे बिना वह नहीं मरेगा। यह संघर्ष तो सभी भारतीयोंके समाप्त होनेपर ही समाप्त होगा।

इसके बाद वक्ताने जनताको अपने जीवनकी कुछ घटनाएँ सुनाई जिनसे जाहिर होता था कि शास्त्रों, पूर्वजों और स्वाध्यायके माध्यमसे हिन्दू धर्मके सर्वोत्कृष्ट तत्त्वोंको आत्मसात कर लेनेवाले एक और सनातनी हिन्दूकी शौकत अली-जैसे कट्टर धार्मिक प्रवृत्तिके व्यक्तिके साथ पटरी कैसे बैठ गई। हम दोनों ही यह मानते हैं कि भारतका उद्धार हिन्दुओं और मुसलमानोंके हृदय मिलनेमें ही है, और यही मान्यता हमें समीप ले आई। मुसलमान इतने अधिक उद्धत या अहंकारी नहीं हैं कि हिन्दुओं या अन्य