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भाषण : लॉ कालेज, मद्रासके विद्यार्थियोंके समक्ष

लोगोंकी मददके बिना ही काम करनेकी ज़िद करें और फिर मेरे जैसे हिन्दूकी मदद स्वीकार करनेके सिवा शौकत अलीके सामने कोई विकल्प भी नहीं था। अपने धर्मके सर्वश्रेष्ठ तत्त्वोंको मैंने समझा है और हिन्दू धर्मकी उदार-भावनाको स्पष्ट करनेके लिए एक हिन्दूके नाते सहयोगका हाथ बढ़ाया था। इस मददको जिस भावनासे स्वीकार किया गया उसे स्पष्ट करनेके लिए गांधीजीने मौलाना अब्दुल बारीसे अपनी पहलेकी एक मुलाकातका हवाला देकर जो बातें हुई थीं, उन्हें विस्तारसे बताया; जिसका सारांश यह था कि जब उन्होंने (श्री गांधीने) इस बातपर जोर दिया कि हम किसी सौदेकी भावनासे मदद देने नहीं जा रहे थे तब मौलानाने इस बातपर जोर दिया कि यदि मुसलमान भलाईका बदला भलाईसे चुकानेकी बात सोचे बिना मदद कबूल करें तो वह इस्लामके विरुद्ध होगा। इस प्रकार अपने-अपने धर्मके हम वो कट्टर अनुयायी——मैं और श्री शौकत अली——इस्लाम और भारतके सम्मानकी रक्षाके उद्देश्यसे भाई-भाईसे भी ज्यादा पास आ गये।

वक्ताने आगे कहा कि वकीलोंको अपनी प्रशिक्षित बुद्धिके बलपर इस प्रश्नका मर्म समझनेमें समर्थ होना चाहिए। यह दो जातियोंके बीचका नहीं वरन् आध्यात्मिक भाषामें प्रकाश और अन्धकार, ईश्वर और शैतानके बीचका युद्ध है। निकृष्ट दर्जेकी आजकी पाश्चात्य सभ्यता मूर्तिमान शैतान ही है। वक्ताने कहा कि मैं इस निष्कर्षपर सोच-विचारकर वर्षोंतक पाश्चात्य सभ्यताका अध्ययन करनेके बाद ही पहुँचा हूँ। शैतानके वेशमें यह सभ्यता बुराईका ही प्रतिनिधित्व करती है। भारतीयोंको इस बुराईको शक्तिसे जूझते रहना है। जो शक्तियाँ यूरोपकी जनताका भाग्य-निर्माण कर रही हैं वे बुराईका मूर्तिमन्त रूप हैं और ईसाइयतको उनसे अधिकाधिक संघर्ष करना है, क्योंकि बुराईका अन्धकार दिन-दिन घना होता जा रहा है। वक्ताने कहा कि मुझे यह कहनेमें तनिक भी हिचक नहीं होती कि भारतमें असहयोगकी पैरवी करनेवाले लोग ईश्वर (सत्य) का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि वे विनम्रतम भावनासे ईश्वरके समक्ष खड़े होकर शस्त्रोंकी नहीं वरन् आत्म-बलिदानकी भावना पानेकी प्रार्थना करते हैं। ब्रिटिश लोग शेखी मारते हैं, धमकियाँ देते हैं और कभी कड़वे, कभी मीठे शब्दोंका प्रयोग भी करते हैं, किन्तु मन-ही-मन वे सच्चे साहसकी कद्र भी करते हैं। किन्तु देखता हूँ आज वाइसराय हमारे साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनके चारों ओरका वातावरण चापलूसीसे भरा हुआ है और वे उसका लाभ उठाना चाहते हैं। उन्होंने यह जाहिर किया कि विशेष उन्हें असह्य कदापि नहीं है। देशका मन बहुलानेके लिए तो यह ठीक हो सकता है, परन्तु यह क्रूरता है क्योंकि इसके पीछे उद्देश्य ईमानदारी और न्यायका नहीं है। वाइसराय गलतीपर-गलती करते और जलेपर नमक छिड़कते चले जा रहे हैं। खिलाफतकी गलतीका दोष उन्होंने यूरोपके सिर मढ़ा है। ठीक है, भारतीय भी केवल ब्रिटिश शक्तियोंसे ही नहीं सभी शक्तियोंसे असह-