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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

योग कर रहे हैं। संसारके जिस कोनेमें खिलाफत और पंजाबके प्रति अन्याय दिखाई पड़ता है भारतीय उससे असहयोग कर रहे हैं।

श्री गांधीने श्रोताओंसे अपील की कि वे अदालतोंको त्याग दें। साथ ही उन्होंने इस बातपर जोर दिया कि जो व्यक्ति देशकी सेवा नहीं करता वह अपना भी भला नहीं कर सकता। मैं अपने बारेमें तो निश्चित रूपसे कह सकता हूँ कि वकालत छोड़कर ऐसी कोई भी सुख-सुविधा मुझे नहीं त्यागनी पड़ी जो पहले प्राप्त रही हो, क्योंकि लोगोंने मेरी सेवाका भरपूर बदला दिया और उनकी ममतासे सुविधाएँ मुझे सौगुनी होकर मिलीं। परन्तु उन्हें यह अवश्य कह सकना चाहिए कि उनका सब-कुछ देशके लिए अर्पित है, उनका एक-एक क्षण, मनोरंजनका समय भी, देशके लिए है। यदि वे सरकार-जैसी शक्तिशाली संस्थाके विरुद्ध, ऐसी संस्थाके विरुद्ध खड़े होना चाहते हैं जिसके पास सत्ताकी सारी शक्ति और कौशल है, जिसके पास मीठे शब्द, रिश्वत तथा त्यागकी भी शक्तियाँ हैं, तो उनको आत्म-त्यागकी इस सबसे बड़ी शक्तिको अपने अन्दर पैदा करनेके लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि वे समझ लें कि यदि वे अदालतोंमें जायेंगे तो उसी सरकारके हाथ मजबूत करेंगे जो पापका प्रतिनिधित्व करती है।

वक्ताने कहा कि इत्तफाकसे मुसलमानोंके साथ अपना भाग्य जोड़नेमें कुछ लोगोंको इसलिए हिचक होती है कि उनको आशंका है यदि मुसलमान विजयी हो गये तो वे हिन्दुओंपर हावी हो जायेंगे और उनको आतंकित करने लगेंगे। वक्ताने कहा कि ऐसी आशंका उस हिन्दू धर्मके लिए अपमानकारी है जिसकी भूमिमें कर्नल टॉडके कथनानुसार——हजारों 'थर्मापोलियाँ[१]' मौजूद हैं। कायरकी मौत मरनेकी अपेक्षा एक शहीदकी मौत पाना कहीं अच्छा है। धर्मकी तलवार किसी निर्दोषपर उठते ही वह धर्म लांछित हो जाता है और मुझे पूरा यकीन है कि इस्लाम लांछित धर्म नहीं है। हिन्दू धर्मकी महानता इसीमें है कि वह संकट-ग्रस्त मुसलमानोंकी मददके लिए बिना शर्त आगे बढ़े। मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि ईश्वर अवश्य ही इस्लामको एक नया आदेश भेजेगा कि मुसलमान हिन्दुओंको अपना साथी समझें और उनसे कभी लड़ाई-झगड़ा न करें। वक्ताने कहा यदि ईसाई धर्मपर भी इसी तरह संकट आ जाये तो मैं उसकी मदद करनेके लिए तैयार हूँ। मैं जनरल डायरको भी यदि वे संकटमें हों तो मदद दूँगा; परन्तु यदि वे जलियाँवाला बाग-जैसा काम करना चाहें तो मदद नहीं करूँगा। उन्होंने लोगोंसे कहा कि वे इस्लामके अनुयायियोंपर नहीं, भलाईपर भरोसा करके और ईश्वरको साक्षी मानकर इस्लामकी मदद करें। तब प्रत्येक मुसलमान उनका संरक्षक बन जायेगा और दोनोंके बीच अटूट एकता कायम हो जायेगी। तब आजकी अपेक्षा हिन्दू इस दिशामें अधिक निश्चिन्त होकर प्रार्थना कर सकेगा। आज

  1. यूनानमें, वहाँ स्पार्टा निवासियोंने ई॰ पू॰ ४८० में तत्कालीन ईरानियोंकी बहुत बड़ी सेनाको बहुत बहादुरीसे रोका था और वीर-गति पाई थी।