पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०५
लॉ कालेज, मद्रासके विद्यार्थियों से बातचीत

तो उसे यह भय बना रहता है कि सन्तके वेषमें शैतान ही तो उसे [मुसलमानोंकी मददकी] सलाह नहीं दे रहा है।

श्री गांधीने आगे बोलते हुए कहा कि सन्धिकी शर्तें बदलवानेका प्रयत्न इस्लामके पुनरुत्थानका ही प्रयत्न है। मुसलमान किसी खलीफाकी पूजा नहीं करते, न किसी ऐसे व्यक्तिकी जिसका चरित्र भ्रष्ट हो; वे इस्लामकी पूजा करते हैं और इस्लामके सार-तत्त्वके प्रतीकके रूपमें खलीफाको मानते हैं। वे सन्धिकी शर्तोंपर हस्ताक्षर करनेवाले सुलतानके लिए नहीं लड़ रहे हैं। वे तो सीधे-सीधे एक आदर्शके लिए लड़ रहे हैं; और हिन्दुओंको भी यही तय करना है कि वे अपने घर-द्वारकी रक्षा करें अथवा न करें। यदि हिन्दू धर्मने इस समय इस्लामका साथ नहीं दिया तो उसपर सदैवके लिए कलंक लग जायेगा। वक्ताने पूरी दृढ़ता और विनम्रताके साथ जोर देकर कहा कि इस्लामके लिए प्राणोत्सर्ग करनेका अर्थ होगा अपने ही धर्म और घर-द्वारके लिए प्राणोत्सर्ग करना।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७२२३) की फोटो-नकलसे।

 

१०९. लॉ कालेज, मद्रासके विद्यार्थियोंसे बातचीत

२२ अगस्त, १९२०

श्री गांधीने लॉ कालेजके विद्यार्थियोंसे एक अनौपचारिक बातचीतके दौरान इस प्रेसीडेन्सीके ब्राह्मणेतर आन्दोलनका उल्लेख करते हुए कहा:

मैं यह कहनेको तैयार हूँ कि संघर्षकी प्रत्येक अवस्थामें ब्राह्मणेतर लोगोंकी माँगोंके सामने झुकना ब्राह्मणोंका कर्त्तव्य है। यदि वे सभी सीटोंकी माँग करें तो वे उन्हें दी जायें। यदि मेरा वश चले तो मैं उन्हें कुछ और भी सीटें दे दूँ। ब्राह्मणेतर लोगोंकी यह माँग ब्राह्मणोंमें उनके अविश्वासका परिणाम है। बहुत समयसे ब्राह्मण समाजको जितना दिया जा सकता है उतना देते आये हैं; परन्तु उन्होंने अहंकारमें अपने और दूसरी जातियोंके बीच जो भेदभाव पैदा कर लिया है वह नितान्त दारुण हैं। वह भेदभाव वैसा ही नृशंस है जैसा वह भेदभाव जिसे यूरोपीय जातियोंने अपने और रंगदार जातियोंके बीच खड़ा कर लिया है और जिसके विरुद्ध हम संघर्षरत हैं।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २३-८-१९२०