११०. पत्र : सी॰ एफ॰ एण्ड्र्यूजको
बेजवाड़ा
२३ अगस्त, १९२०
मेरा मद्रास प्रान्तका दौरा आज पूरा हो गया, लेकिन इसने मुझे बहुत थका भी दिया है। इसमें लगातार यात्रा करनी पड़ी। मेरे अनुभवसे मेरी यह राय मजबूत हुई है कि यह संघर्ष बिलकुल सच्चा, सही है, और मेरा यह विश्वास और भी पुष्ट हुआ है कि शौकत अली एक महान् और नेक व्यक्ति हैं। सचमुच, मैं आजतक जितने लोगोंसे मिला हूँ वे उन सबसे अधिक खरे व्यक्ति हैं। वे उदार हैं, बेलाग हैं, बहादुर और नम्र हैं। उन्हें अपने उद्देश्यमें आस्था है, स्वयंपर विश्वास है। ईश्वरमें उनकी सहज श्रद्धा है, इसलिए वे इतने आशावादी हैं कि उनके संसर्गमें आनेवाले दूसरे लोगोंका मन भी ताजगीसे भर जाता है। आज जनताका रुख इतना उत्साहपूर्ण है कि आश्चर्य होता है। कार्यक्रमका अहिंसात्मक पक्ष बहुत प्रगति कर रहा है। बंगलौरमें लोग बड़ी तादादमें इकट्ठे हुए थे; जहाँतक नजर जाती थी लोग-ही-लोग दिखाई देते थे। सभामें सिर्फ एक अंग्रेज पुरुष और एक अंग्रेज स्त्री थी। लेकिन भीड़ने उनके साथ धक्कम-धक्कातक नहीं किया। हमें हर जगह से भीड़के अहिंसात्मक आचरणकी साक्षी मिली है। और बहुत ही कठिन परिस्थितियोंमें भी मुहाजरीनोंके संयत व्यवहारके सम्बन्धमें जो साक्षी स्वयं सरकारने दी है, वह तो तुमने भी देखी ही होगी, हालाँकि उसने यह साक्षी कुछ अनिच्छासे ही दी है। मेरे विचारसे यह सब बहुत अच्छा है। लेकिन दूसरी ओर देखता हूँ, ऊँचे तबकेके लोगोंने बहुत ही कम उत्साह दिखाया है। वे तो जरा भी त्याग नहीं करना चाहते। वे सब-कुछ भाषणों और प्रस्तावोंके बलपर ही पा लेनेकी आशा रखते हैं। वे बलिदानके लिए उद्यत राष्ट्रको आगे बढ़ने से रोक रहे हैं।
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी
सौजन्य : नारायण देसाई।