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१११.पत्र : सरलादेवी चौधरानीको

बेजवाड़ा
२३ अगस्त, १९२०

रोज ही या तो रात गाड़ीमें बितानी पड़ी है या दिन। जब रातमें गाड़ीमें रहा हूँ तो बराबर भीड़के कारण परेशान रहा हूँ। लेकिन ईश्वरकी कृपासे अब हम यह थका देनेवाला दौरा लगभग समाप्त कर चुके हैं। सब बातोंके बावजूद मैं पूरी तरह स्वस्थ और ठीक-ठाक रहा हूँ।

तुम्हारे पत्र तुम्हारी सामान्य मनोदशाके अनुरूप ही हैं। कुछ पत्र तो निश्चय ही निराशा, शंका और सन्देहसे भरे हुए हैं।

तुम अब भी मथुरादासको[१]नहीं समझ पाई हो। वह तथा अन्य दूसरे लोग जो मेरे आसपास रहते हैं, हम सबसे श्रेष्ठ हैं। आशा है तुम भी अपनेको 'सब'में शामिल मानोगी। और अगर इसमें तुम अपनेको शामिल न मानो तो मुझसे तो वे श्रेष्ठ हैं ही। इसमें कुछ अस्वाभाविक भी नहीं है। मेरा दावा है कि मैंने अपने साथियोंके रूपमें अपनेसे श्रेष्ठ व्यक्तियोंको ही चुना है, मतलब यह कि उनमें मुझसे श्रेष्ठ होनेकी सम्भावनाएँ हैं। मैं तो अब बहुत ही कम प्रगति कर सकता हूँ, जब कि उनकी प्रगतिकी सम्भावनाएँ असीम हैं। उनका आदर्श मेरा चरित्र है और अपने आदर्शके प्रति उनके मनमें प्रबल उत्साह है। मुझे और (अगर तुम सच्चे अर्थोंमें मेरी हो तो) तुम्हें उनका स्नेह और सौहार्द कायम रखनेके लिए, उनका उपयुक्त पात्र बननेके लिए सब कुछ दे देना चाहिए। अगर किसी सवालपर झुका नहीं जा सकता तो वह है सिद्धान्तका सवाल। उसके लिए तो हमें सब तरहका और सब कुछ त्याग कर देनेको तैयार रहना चाहिए। लेकिन मैं ऐसा सच्चा और निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करनेके लिए सारी दुनिया न्यौछावर कर दूँगा। उनका प्यार ऊपर उठाता है, सही रास्तेपर कायम रखता है। मैं उनका आश्रय हूँ, वे मेरे अवलम्ब हैं। तुम्हें उनके उत्साह और चौकसीपर गर्व होना चाहिए। वे कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते और इसमें वे सही हैं। मैं और तुम उनकी हर उचित अपेक्षाको पूरा करनेके लिए कर्त्तव्य-बद्ध हैं। तभी हमारा मिलन शुभ होगा।

हाँ, अगर तुम लाहौरमें अपने स्थानपर बनी रहो तो यह ठीक ही होगा। सप्ताह-भर बहुत उथल-पुथल और परेशानी बनी रहेगी, इसलिए कलकत्ता आनेसे तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा। तुम अपनी माँके घर जाना चाहती हो; ऐसा तो कभी शान्तिके समयमें, जब तुम कताई और हिन्दीमें पूरी महारत हासिल कर लो और हमारे लाहौरके कामको ठीकसे जमा दो तभी किया जा सकता है। देख रही हो कि मैं पंजाब

  1. मथुरादास त्रिकमजी (१८९४–१९५१); गांधीजीकी सौतेली बहनके पौत्र; समाजसेवी, लेखक और गांधीजीके अनुयायी; बम्बई कांग्रेस कमेटीके मन्त्री १९२२-२३।