न कहकर लाहौरकी बात कह रहा हूँ। मेरी इच्छा है कि तुम वहाँ काफी सुदृढ़ नींव डाल दो, और इसीलिए मैं चाहता हूँ बहुत विस्तृत क्षेत्रमें काम न करके एक स्थानपर खूब जमकर काम किया जाये।
तुम अपने मद्दान् समर्पणका पुरस्कार माँगती हो। समर्पण तो स्वयं ही अपना पुरस्कार है।
तुम्हारा,
विधि- प्रणेता[१]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी
सौजन्य : नारायण देसाई
११२. भाषण : बेजवाड़ामें[२]
२३ अगस्त, १९२०
हमारे विरुद्ध की गई व्यूह-रचनाको यदि हम समझ न पाये तो हम अपने हाथों अपना विनाश कर लेंगे। हमारी सरकार शक्तिशाली है, और उसने अपनी सारी शक्ति, अपना सारा शस्त्रबल हमारे विरुद्ध व्यूह-बद्ध कर रखा है। सरकारमें ऐसे लोग हैं जो योग्य, साहसी, काममें रुचि लेनेवाले और त्याग करने में समर्थ हैं। यह एक ऐसी सरकार है जो अपना उद्देश्य पूरा करनेमें अच्छे या बुरे तरीके अपनाते हुए धर्माधर्म- का विचार नहीं करती। (शर्म, शर्मकी आवाजें) उस सरकारके लिए कोई भी हथकंडा अपनाना बड़ी बात नहीं है। वह भय दिखाने और आतंकित करनेका सहारा लेती है। वह हमें खिताबों, सम्मान, उच्च पदोंकी रिश्वत देती है। (शर्म, शर्मकी आवाजें) वह सुधारोंकी अफीम खिलाती है। किसी भी दृष्टिसे देखें, यह भमकेपर दो-दो बार खींची हुई निरंकुशताकी शराब है, जो प्रजातन्त्रकी बोतलमें सामने आती है। किसी कुशल और शरारती व्यक्ति द्वारा दिया गया बड़े-से-बड़ा उपहार तबतक व्यर्थ है। जबतक उसका दिल साफ नहीं है। यह सरकार एक ऐसी सभ्यताका प्रतिनिधित्व करती है जो शुद्ध भौतिकतावादी और नास्तिक है। (शर्म, शर्मकी आवाजें) मैंने सरकारके ये गुण आपके क्रोधको भड़कानेके लिए नहीं बताये हैं बल्कि इसलिए बताये हैं कि आप उन ताकतोंको अच्छी तरह जान-बूझ लें जो आपके खिलाफ तैनात हैं। क्रोधसे कुछ काम नहीं बनेगा। परन्तु हमें नास्तिकताका आस्तिकतासे और