पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०९
पत्र: सरलादेवी चौधरानीको

असत्यका सामना सत्यसे करना होगा। हमें उनकी शरारतों और हथकंडोंका मुकाबला स्पष्टता और सादगी से करना होगा। उनके आतंक और धमकियोंको बहादुरीसे सहना होगा। आज हर स्त्री-पुरुष और बच्चेसे अडिग शौर्यकी अपेक्षा है।...

मैं बेजवाड़ाके नागरिकोंसे प्रश्न करता हूँ कि सरकारी नौकरीमें आपके लिए जो सुख निहित हैं उनपर निगाह डालनेसे पहले आप उन्हें तराजूके एक पलड़ेपर और अपना धर्म तथा राष्ट्रीय सम्मान दूसरेपर चढ़ाकर देखिये और तब चुनाव कीजिए।...

मेरी समझमें नहीं आता कि हममें से जिन लोगोंने इस सरकारको समझ लिया है, जिन्होंने वाइसरायकी घोषणा पढ़ी है, जो पंजाब या खिलाफतके मामलेमें न्याय न देनेके इस सरकारके निश्चयको समझ चुके हैं, वे इस बातकी आशा कैसे कर सकते हैं कि इस सरकारसे सहयोग करके अथवा [कौंसिलोंमें प्रवेश करनेके बाद उसके मार्गमें] रोड़े अटकाकर हम किसी प्रकारकी वास्तविक स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं।

नरम दलके लोग इस सरकारके हाथों न्याय मिलना सम्भव मानते हैं। दूसरी ओर गरम दलके लोगोंने इस सरकार और इसके कारनामोंकी दृढ़तापूर्वक, जी खोलकर निन्दा की है। जनताकी मनोवृत्तिको समझनेवाला कोई भी राष्ट्रवादी व्यक्ति इन विधान परिषदोंमें जानेसे लाभकी आशा कैसे कर सकता है? परन्तु यदि वे वास्तवमें जनमतका प्रतिनिधित्व करते हैं और यदि वे जन-मानसपर अपना असर कायम रखना चाहते हैं तो मैं उन्हें सुझाव देता हूँ कि विधान परिषदोंमे बाहर रहें, जनमतको दृढ़ करें और जो कुछ भी देने को तैयार नहीं है उनसे न्याय लेकर ही छोड़ें।

[अंग्रेजीसे]
नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम : पोलीटिकल : दिसम्बर १९२० सं॰ २१०-१६ ए
 

११३. पत्र : सरलादेवी चौधरानीको

बम्बई जाते हुए मनमाड़के रास्तेमें
२४ अगस्त, १९२०

परम प्रिय सरला,

तुम्हारे पत्रोंसे मुझे बहुत दुःख हुआ। तुम्हें मेरा उपदेश देना पसन्द नहीं, लेकिन जबतक तुम्हारा व्यवहार स्कूलमें पढ़नेवाली लड़कियों-जैसा है तबतक मैं तुम्हें उपदेशके अलावा और दूँ भी क्या? अगर मेरा प्यार सच्चा है तो जबतक तुम, जिस आदर्शको तुमने योग्य मानकर स्वीकार किया है, उसे अपने आचरणमें नहीं उतारतीं तबतक यह प्यार उपदेशोंके रूपमें ही प्रकट होगा। मैं यह बिलकुल पसन्द नहीं करता कि तुमने जो जीवन अपनाया है या जिसे अपनानेकी तुम कोशिश कर

१८–१४