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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२४१

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खिलाफत और स्वदेशी

निरीह जनताका कत्लेआम करके अवश्य एक "नैतिक प्रभाव" उत्पन्न किया। जो लोग असहयोग आन्दोलनको बढ़ानेमें जुटे हुए हैं वे आत्म-त्याग, आत्म-बलिदान और आत्म-शुद्धिकी प्रक्रियासे नैतिक प्रभाव उत्पन्न करना चाहते हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि सर नारायणने जनरल डायरके कत्लेआमकी चर्चा असहयोगके साथ-साथ, दोनोंको एक धरातलपर रखकर, कैसे की। उनके आशयको समझनेकी मैंने भरसक कोशिश की है, लेकिन दुःखके साथ कहना पड़ता है कि कुछ समझ नहीं पाया।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-८-१९२०
 

११५. खिलाफत और स्वदेशी

स्वदेशीको मैंने बहुत आशंकित मनसे असह्योगके कार्यक्रममें शामिल किया था। मौलाना हसरत मोहानी इतने उत्साहमें थे कि मुझे लाचार होकर इसे स्वीकार करना ही पड़ा। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि स्वदेशीको इस कार्यक्रममें शामिल करनेके उनके जो कारण हैं वे मेरे कारणोंसे भिन्न हैं। वे ब्रिटिश मालके बहिष्कारके पक्ष-धर हैं। जैसा कि मैंने इसी अंकमें अन्यत्र बताया है, मैं इस सिद्धान्तको स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन मोहानी साहब जब बहिष्कारको लोकप्रिय नहीं बना सके तो उन्होंने इस भावसे इसे स्वीकार कर लिया कि कोई बेहतर चीज नहीं है तो स्वदेशी ही सही। लेकिन मेरे लिए यह बता देना जरूरी है कि असहयोगके कार्यक्रमोंमें मैंने स्वदेशीको कैसे शामिल किया।

असहयोग और कुछ नहीं, आत्म-बलिदानका शिक्षण ही है। और मेरा खयाल है कि जो देश असीम बलिदान कर सकता है वह अनन्त ऊँचाईतक भी उठ सकता है। यह बलिदान जितना विशुद्ध होगा, प्रगतिकी रफ्तार उतनी ही तेज होगी। स्त्री-पुरुषों और बच्चोंके सामने स्वदेशी एक विशुद्ध ढंगका आत्म-बलिदान प्रारम्भ करनेका अवसर प्रस्तुत करती है। इस तरह यह हमारी बलिदानकी क्षमताकी परीक्षाका प्रसंग भी प्रस्तुत करती है। यह खिलाफतके सवालपर राष्ट्रीय भावनाकी गहराईका अन्दाजा लगानेका एक पैमाना है। क्या राष्ट्रकी भावना इस सवालपर इतनी तीव्र है कि वह बलिदानकी इस प्रारम्भिक प्रक्रियासे भी गुजर सके? जापानी रेशम, मैनचेस्टरके सूती वस्त्र और फ्रांसीसी लेसके कपड़ेके प्रति अपनी रुचि बदलकर अपनी सारी साज-सज्जाके लिए क्या राष्ट्र हाथके कते, हाथके बुने कपड़े अर्थात् खादीसे ही सन्तोष मान लेगा? अगर करोड़ों लोग विदेशी वस्त्र पहनना या उनका उपयोग करना छोड़ दें और हम अपने घरोंमें जो कपड़े तैयार कर सकते हैं उन्हीं सादे कपड़ोंसे सन्तोष कर लें तो यह हमारी संगठन-क्षमता, शक्ति, सहयोग और आत्म-बलिदानका परिचायक होगा; और जब हममें ये गुण आ जायेंगे तो हम जो चाहते हैं वह सब प्राप्त करनेमें समर्थ हो जायेंगे। यह राष्ट्रीय एकताका एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रमाण होगा।