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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

योगका रहस्य समझ गया था, मेरे-जैसा भी उसका आचरण कर सकता है। तो फिर कुछ लोगोंका यह कहना उचित नहीं कि जनता उसके लिए तैयार नहीं है। मेरे पुत्रों और मेरी स्त्रीने मेरे साथ असहयोग किया है। तो मैं यह कैसे मान लूँ कि भारतकी जनता इस वस्तुको समझनेमें समर्थ नहीं है। यह शस्त्र व्यावहारिक है और यदि सब लोग उसका उपयोग करें तो उससे अनेक लाभ हो सकते हैं। हमारी प्रजा इस शस्त्रका उपयोग कोई पहली बार नहीं कर रही है। हमें यह नहीं मानना है कि हम असहयोग करेंगे तो दूसरे लोग भी वैसा ही करेंगे। इस सवालपर कांग्रेसका निर्णय होने तक रुकता प्रगतिका चिह्न नहीं है। हमें उसपर अभीसे आचरण शुरू कर देना चाहिए और कांग्रेसके पास काम कर दिखानेके बाद जाना चाहिए। मैं कांग्रेस द्वारा उसे स्वीकार करानेके लिए कलकत्ता जानेवाला हूँ। इतिहासमें असहयोगके अनेक उदाहरण हैं। बोअर लोगोंका उदाहरण तो मौजूद ही है। बोअर प्रजाको जो अधिकार दिये गये थे, वे उसे पसन्द नहीं आये और जनरल बोथाने असहयोग आरम्भ किया। अन्तमें उन्हें इंग्लैंड बुलाया गया और आज आफ्रिकाकी जनता स्वतन्त्र है। बोअर लोगोंने कौंसिलोंका त्याग किया था। यहाँकी कौंसिलोंमें नरम दलवाले लोग जाना चाहते हों तो भले जायें किन्तु राष्ट्रवादियोंसे मैं पूछूँगा कि आप वहाँ जाकर क्या करेंगे? मेरा तो खयाल है कि वहाँ आपको बहुमत प्राप्त नहीं होगा। जबतक आपको प्रत्येक मत न मिले तबतक आपकी कुछ चलेगी नहीं। उनके हाथमें ऐसे पासे हैं जिनके द्वारा वे तुम्हें ठग सकते हैं। इसलिए उनके साथ तुम्हारे शुद्ध पासे किसी काम नहीं आयेंगे। तुम्हारे पासे पोले हैं जबकि सरकारके पासोंमें शीशा भरा हुआ है। इसलिए तुम्हारा वहाँ जाना निरर्थक है। ट्रान्सवालमें डेढ़ लाख गोरोंके खिलाफ असहयोग करके १०,००० भारतीयोंने विजय प्राप्त की थी तो फिर भारतमें इस शस्त्रको निकम्मा माननेका कोई कारण नहीं है। रायबहादुर रमणभाई कहते हैं कि प्रजा इस शस्त्रको लेकर एक बार पागल हुई और अंकुशके बाहर गई तो भविष्यमें वह क्या-क्या अत्याचार नहीं करेगी? एक बार जहाँ अंकुश हटा कि फिर वह मर्यादामें नहीं रहेगी। किन्तु हम तो अपने कामका आरम्भ शिक्षित-वर्गसे कर रहे हैं। यदि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ें और सुव्यवस्थासे काम लें तो उससे भयंकर अव्यवस्था उत्पन्न होनेका डर नहीं रहता। इस शस्त्रका कोई गलत उपयोग करेगा तो वह पन्द्रह दिन भी नहीं चलेगा। यह निर्मल शस्त्र कैसे भी आदमीके हाथमें क्यों न जाये, उससे अत्याचार होनेकी सम्भावना नहीं है। जो प्रजा निर्वीर्य हो गई है और अधीर होती जा रही है उसके लिए असहयोग ही एकमात्र उपाय है। श्री वामनराव कहते हैं कि हमारे हाथमें जो भी शस्त्र आ जाये और हम उसीको उठा लें तो जंगली कहे जायेंगे। इस- लिए चाहे जैसा शस्त्र उठानेका तो हमें अधिकार ही नहीं है। यदि आप लोगोंमें से किसीको ऐसा लगे कि मैंने बिना किसी अनुभवके और बिना विचारे ही आप लोगोंको इस शस्त्रका उपयोग करनेकी सलाह दी है तो आप मेरा त्याग कर देना। बिना सोचे-समझे किसी भी शस्त्रका प्रयोग करने से तो देशमें उथल-पुथल मच जायेगी और हमारी दशा पशुओं-जैसी हो जायेगी। तिलक महाराजकी श्मशान यात्राके समय