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हिन्दुओंके प्रति

मैंने लोगोंको ऐसा व्यवहार करते देखा जिससे मेरे मनको आघात लगा। उस समय मुझे लगा था कि लोग मर्यादाका पालन नहीं कर सके। उनके अवसानसे हमें जो दुःख हुआ है उसके आँसू अब भी सूखे नहीं हैं। इसीलिए अभीतक मैंने इस बातकी चर्चा नहीं की। असहयोगका शस्त्र मनचाहे ढंगसे चलानेकी चीज नहीं है। उसमें हमारी शोभा नहीं है। असहयोगकी पूरी तालीम लेनेके बाद ही हमें उसमें पड़ना चाहिए। असहयोग हिंसा और रक्तपातको बढ़ानेका नहीं उसे कम करनेका हथियार है। कहा जाता है कि खेड़ा जिलेमें सत्याग्रहके बाद लूटमार और चोरीको घटनाएँ होने लगीं। लेकिन ये तो पहले भी होती थीं। रंगरूटोंकी भरती करते हुए मैंने कहा था कि लूटमारके किस्से तो होते ही रहेंगे। इन्हें टालनेका तो यही उपाय है कि शस्त्र रखो या फिर मेरी तरह दो-चार वस्त्रोंके सिवाय और कुछ न रखो। डाकुओंके उत्पातसे बचनेके लिए सरकारका मुँह ताकना तो स्वराज्यके लिए हमारी अयोग्यता प्रकट करता है। लुटेरोंको तुम्हें प्रेमसे जीतना है। असहयोगका वृक्ष कोई एकदम नहीं उगता। इससे तुम्हें अनेक विभूतियाँ प्राप्त होंगी। नगरपालिकाओंका त्याग तो हमें करना नहीं है क्योंकि वे हमारे गाँव और नगरोंके लाभके लिए हैं। असहयोगका सारा कार्यक्रम एकदम कार्यान्वित करनेकी बात नहीं है। धीरे-धीरे करना है। हमें रुकना पड़ेगा। लेकिन ज्यादा समयतक नहीं रुकना पड़ेगा। इसपर हमें सरकारसे अमल नहीं कराना है, स्वयं करना है। यदि आपको ऐसा लगे कि इस प्रस्तावपर अमल करना सम्भव नहीं है तो इसे नामंजूर कर देना। किन्तु यदि ऐसा लगे कि हमारे देशकी नाक कट गई है और धर्मका अपमान हुआ है तो आप इस प्रस्तावका स्वागत करना, इसे स्वीकार करना; घर जाकर उसपर विचार करना और यदि ठीक लगे तो इस शस्त्रका उपयोग करना।

[गुजरातीसे]
गुजराती, ५-९-१९२०

 

११९. हिन्दुओंके प्रति

मैं देखता हूँ, खिलाफतके प्रश्नको लेकर हिन्दू अब भी इस असमंजस में पड़े हुए हैं कि वे उसमें पूर्णतः भाग लें अथवा न लें। मैंने तो कई वर्षोंसे निर्णय किया हुआ है कि हिन्दुस्तानका हित हिन्दू-मुसलमानोंकी हार्दिक एकतामें ही निहित है। इसी कारण सत्याग्रहके दिन अर्थात् ६ अप्रैलको[१], हिन्दू-मुसलमानोंकी एकतापर विशेष जोर दिया गया था।

मैं ब्रिटिश साम्राज्यसे सम्बन्ध रखनेकी अपेक्षा हिन्दू-मुस्लिम एकताको अधिक महत्त्व देता हूँ। ब्रिटिश साम्राज्य से सम्बन्ध रखना हिन्दुस्तानकी जनताके लिए अनिवार्य नहीं है। लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना हिन्दुस्तानका कल्याण असम्भव है।

  1. १९१९ ।