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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परिषदोंके प्रति देखनेमें आता है, तथापि इस मोहको समझना कठिन है। जिन्हें सरकारसे न्याय मिलनेकी आशा है उनसे तो मैं कुछ नहीं कह सकता। ऐसा व्यक्ति जो शराब पीनेमें लाभ देखता हो, उससे शराब छुड़वानेका प्रयत्न करना मिथ्या है। लेकिन बहुतसे लोग ऐसे हैं जो सरकारके प्रति मुझसे भी कम श्रद्धा-भाव रखते हैं। उन्हें उसपर आरम्भसे ही श्रद्धा न थी और न आज ही है। वे लोग विधान परि- षदोंके प्रलोभनमें कैसे फँस जाते हैं, यह बात मेरी समझके बाहर है।

जबतक सरकारी वर्गका अन्तःकरण शुद्ध नहीं, उसकी नीयत साफ नहीं, जबतक वह पंजाबके पापका प्रायश्चित्त नहीं करता, जबतक वह मुसलमानोंके प्रति किये गये विश्वासघातके कलंकको धो नहीं डालता तबतक चाहे वह कितने ही अच्छे सुधार क्यों न पेश करे, मेरे लिये तो वे जहर मिले दूधके समान त्याज्य हैं। श्री शर्मा[१]और डा॰ सप्रूके नियुक्त होनेसे क्या हुआ? इसे तो मैं धोखेकी टट्टी मानता हूँ। लॉर्ड सिन्हा[२]गवर्नर हो गये, इससे भी क्या होता है? यह सब तोहफे देनेवाली सत्ता कौन-सी है? इनके देनेमें उसकी नीयत क्या है? अपने-आपको और भी दृढ़ करना, पंजाबकी घटनाओं और खिलाफतके घावोंकी मरहम-पट्टी करना। घाव भीतर ही भीतर गहरा होता चला जाये लेकिन बाहरसे सूखता हुआ दिखाई दे, ऐसी मरहम-पट्टी करनेवाले तबीबको हम क्या कहेंगे?

माननीय वाइसराय महोदयके भाषणकी ओर देखिए। उनका कहना है कि यद्यपि वे पंजाबके सम्बन्धमें आलोचना करनेवाले व्यक्तियोंको उत्तर देनेकी क्षमता रखते हैं तथापि उत्तर देना उचित नहीं समझते और अन्तिम निर्णय भविष्यके इतिहासकारके हाथमें सौंपते हैं। माननीय वाइसराय महोदय भूल जाते हैं कि अन्तिम निर्णय तो वे स्वयं ही दे चुके हैं। सर माइकेल ओ'डायरने स्वयंको निर्दोष प्रमाणित किया है, जनरल डायरने कम-अक्लीसे काम लेकर भी कोई अपराध नहीं किया है; अन्य अधिकारियोंने तो कोई अपराध किया ही नहीं; कर्नल ओ'ब्रायन आदि निर्दोष ठहराये जाकर सम्मानित ओहदोंपर प्रतिष्ठित हैं; रौलट अधिनियम कायम है——यह है पंजाबके सम्बन्धमें किया गया अन्तिम निर्णय। अब इतिहास क्या कहेगा? कदाचित् भविष्यमें इतिहास उन्हें अयोग्य अधिकारी ठहरायेगा; सर माइकेल ओ'डायरको नीरोके उपनामसे विभूषित करे। किन्तु इससे क्या होता है? इससे आज कष्ट भोगनेवाली प्रजाको कौन-सी राहत मिलनेवाली है? रोगीकी मृत्युके पश्चात् यदि रोगका दूसरा और ठीक निदान हो भी जाये तो रोगीको क्या लाभ? हम तो पंजाबके लिये आज ही न्याय माँगते हैं। यदि हम सब एक हों तो एक भी पंजाबीका पेटके बल रेंगना हमें ऐसा लगेगा मानो समस्त हिन्दुस्तानको पेटके बल रेंगना पड़ा हो। पापका प्राय- श्चित्त किये बिना सरकारको लोगोंसे सहयोगकी अपेक्षा करनेका कोई अधिकार नहीं। लोग सरकारकी मेहरवानीको स्वीकार नहीं कर सकते।

  1. राम बहादुर बी॰ एन॰ शर्मा, वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।
  2. सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा (१८६४–१९२८); वाइसरायकी परिषद्के कानून सदस्य; प्रथम भारतीय गवर्नर; बम्बईमें १९१५ में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशनके अध्यक्ष।