आइये, अब खिलाफतके सम्बन्धमें दिये गये उनके भाषणकी जाँच करें। उन्होंने मुसलमानोंकी भावनाओंको मित्र-राष्ट्रोंके सम्मुख व्यक्त किया; इससे स्पष्ट हो जाता है कि वे उनकी माँगके औचित्यको स्वीकार करते हैं। लेकिन मित्र-राष्ट्र जो-कुछ करते हैं उसपर हमारी सरकारका कोई वश नहीं है, ऐसा कहकर वे अपनेको निर्दोष प्रमाणित करना चाहते हैं। यह असत्य है। हिन्द सरकार जानती है और सारा जगत् जानता है कि टर्की सम्बन्धी समझौतेकी शर्तोंकी रचना करने तथा उन्हें स्वीकार करवानेमें ब्रिटिश सरकारका प्रमुख हाथ है। वे जानते हैं कि श्री लॉयड जॉर्ज चाहते तो अवश्यमेव अपने वचनका पालन कर सकते थे और मुसलमानोंकी भावनाओंका समादर कर सकते थे। लेकिन उनका उद्देश्य तो टर्कीका नाश करना और इस्लामकी जड़ोंको खोखला करना था। इसके बावजूद वाइसराय महोदय यह कहकर कि खिलाफतके सम्बन्धमें हम सब-कुछ कर चुके हैं, अपने उत्तरदायित्वसे छुटकारा पा लेना चाहते हैं; इसका अर्थ तो यह हुआ कि वे जनताको भ्रमित करते हैं।
ऐसे अन्यायोंको दूर करनेके लिये जनता असहयोग-जैसे निर्दोष अस्त्रको धारण करनेके लिए जूझ रही है, तब वाइसराय महोदय उसकी हँसी उड़ाते हैं। मौलाना शौकत अली तथा मुझे गिरफ्तार करनेका विचार त्यागकर उन्होंने असहयोग आन्दोलनको हँसीमें उड़ा देनेका निश्चय किया है। यदि इस निश्चयमें पाखण्डका पुट न होता तो मैं माननीय वाइसराय महोदयका अभिनन्दन करता। जनरल डायर द्वारा किया गया कत्लेआम जंगली हथियार है, तथा किसी आन्दोलनकी हँसी उड़ाकर उसे मन्द कर देना उसीका सुधरा हुआ रूप है। और यदि जनता असहयोग न करके पेटके बल रेंगनेके अपमानको भी पी जायेगी तो निःसन्देह उसकी हँसी होगी। जो हाथ निर्दोष जनताके रक्तसे रंजित है, जिस कलमसे इस्लामका अपमान हुआ है उस हाथ और कलमसे यदि राजसिंहासन भी मिले तो हमारे लिए वह त्याज्य होना चाहिए; दीन और इज्जतको बनाये रखनेवाली जनताका यही सिद्धान्त होना चाहिए।
अतएव मुझे उम्मीद है कि जनता दृढ़तापूर्वक असहयोगका पहला कदम उठाकर आत्म-सम्मानकी रक्षा करेगी, त्रिविध मोहका त्याग करेगी और वाइसराय महोदयको हँसी उड़ानेके परिणामस्वरूप पश्चात्ताप करनेके लिये विवश करेगी।
नवजीवन, २९-८-१९२०