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१२२. मद्रास-यात्रा

मद्रासकी श्रद्धा

मैं पंजाबकी यात्राका विवरण नहीं लिख पाया; भाई महादेव देसाईने उसका चित्रण किया है। मेरा इरादा तो सिन्धके संस्मरण लिखनेका भी था; लेकिन उतना समय नहीं मिल सका। सिन्धियोंका उत्साह भी कम न था। कहाँ उत्साह कम था और कहाँ ज्यादा, यह कहना मुश्किल है। तथापि मद्रासके लोगोंने हमेशा मेरे मनपर विलक्षण प्रभाव डाला है। मद्रासमें हम दोनों भाइयोंको अंग्रेजीमें भाषण देने पड़े। जहाँ मुसलमान बहुत अधिक थे वहाँ किसी-किसी स्थानपर भाई शौकत अली हिन्दुस्तानीमें बोलते और लोग अत्यन्त शान्तिपूर्वक भाषण सुना करते थे। इसका मेरे मनपर बहुत असर होता था। मद्रासकी श्रद्धाका पार नहीं है; लोगों में आन्तरिक शुद्धताके बहुत अधिक दर्शन होते हैं।

फिर भी निराशा

इतना होनेपर भी हमारी यात्राका तात्कालिक फल कुछ खास मिला हो सो नहीं कहा जा सकता। सभी जगहोंपर कुछ वकीलोंने वकालत बन्द कर दी है, किसी-किसीने अपने बच्चोंको स्कूलसे उठा लेनेका निश्चय किया है, कुछ-एकने अपने ओहदोंको छोड़ दिया है, कुछ लोगोंने विधान परिषदोंमें जानेका विचार त्याग दिया है, तथापि जनताकी भक्तिको देखते हुए यह नतीजा बहुत कम है।

कारण

कारण तुरन्त समझमें आ सकते हैं। अग्रगण्य व्यक्तियोंमें से कितनोंको ही असहयोगमें विश्वास नहीं है। जिन्हें विश्वास है उनमें आत्मत्याग करनेकी शक्ति नहीं है। इनमें तीसरा एक वर्ग है जो झूठा है। वह कहता कुछ है और मानता कुछ है। नेताओंकी ऐसी स्थिति होनेसे जनताका तुरन्त ही कोई कदम न उठाना स्वाभाविक है। इस अनुभव से पता चलता है कि असहयोगरूपी शुद्ध आन्दोलनसे वातावरण शुद्ध होगा, पाखण्ड कुछ हल्का होगा और समाजका मैल उतराने लगेगा। इतनी शुद्धिके बिना राष्ट्रकी उन्नति होना असम्भव है।

मौलाना शौकत अली

इस यात्रा के दौरान मुझे भाई शौकत अलीका जो परिचय मिला वह समस्त निराशाको दूर करनेवाला है। उनकी दृढ़ता और सरलता, उनकी सचाई, उनका ईमान, अपने प्रति और लोगोंके प्रति उनका अनन्य विश्वास, उनकी उदारता, सख्यभाव, शौर्य और नम्रता——ये सब गुण उनके जीवनको उद्भासित कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि हिन्दुस्तानके प्रति उनका प्रेम गहन है। उनकी अभिलाषा है कि हिन्दू-मुसल-