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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२५८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारे लिए कुछ अधिक हो जाता था; लेकिन निमन्त्रण बहुत जगहोंसे मिले थे। इनकार करना उचित नहीं लगता था और फिर यह लोभ भी था कि हम जितनी दूरतक अपना सन्देश पहुँचा सकें उतना ही अच्छा है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-८-१९२०
 

१२३. भाषण : गुजरात राजनीतिक परिषद्में बहिष्कारपर[]

२९ अगस्त, १९२०

बहिष्कारको मैं विघ्नरूप मानता हूँ। शायद आप मेरी बात नहीं समझेंगे। हमारे ऊपर जो अन्याय हुए हैं, उनके विषयमें काफी कहा जा चुका है और उस सम्बन्धमें दो मत भी नहीं हैं। इस बातपर भी सब लोग सहमत हैं कि उस मामलेमें हमें कोई-न-कोई कदम उठाना चाहिए। इसके लिए हमारे पास असहयोगका शस्त्र है। तो फिर बहिष्कारका यह नया शस्त्र और किसलिए? बहिष्कारके सम्बन्धमें मैं धार्मिक दृष्टिसे जिन निर्णयोंपर पहुँचा हूँ और उसमें मुझे जो नैतिक बाधाएँ दिखाई पड़ती हैं उन्हें मैं आपके सामने नहीं रखना चाहता। इस समय तो मैं आपके समक्ष इतना ही सिद्ध करना चाहता हूँ कि बहिष्कारकी नीति अव्यावहारिक सिद्ध हो चुकी है। वंगभंगके बाद बहिष्कार आन्दोलन बंगालमें पहले जितने जोशके साथ नहीं चलाया जा सका। भाई जीवनलाल[], श्री॰ बैप्टिस्टा और गंगाधरराव देशपाण्डे[]आदि सत्याग्रहके विरुद्ध और बहिष्कारके पक्षमें थे। उन्हें बहिष्कारका मोह था। अहमदनगरमें हुई परिषद्में उन्होंने बहिष्कारके लिए लोगोंसे एक प्रतिज्ञा भी लिवाई थी। मेरे मतके खण्डनमें उन्होंने वक्तव्य भी दिये थे। तीन माहके भीतर ही बहिष्कार शुरू होगा, ऐसी घोषणा होनेके बावजूद उसपर अमल नहीं हुआ। इसरत मोहानी-जैसा कर्मठ कार्यकर्त्ता भारतमें दूसरा शायद ही कोई हो। दिल्लीमें असहयोगके सम्बन्धमें हुई सभामें मैंने उनसे बड़ी प्रार्थना की और बहिष्कारका प्रस्ताव पेश न करनेके लिए समझाया। लेकिन मुसलमानोंपर उनका ऐसा प्रभाव था कि मेरी बात कौन सुनता? मेरी बात उन्होंने सुनी सही, कुछ लोगोंको ऐसा भी लगा कि मेरे कथनमें कुछ तथ्य है। किन्तु अन्तमें बहिष्कारका प्रस्ताव पास हो गया। किन्तु उसपर अमल नहीं हो सका। कारण वे तो उसपर आशिक थे और आशिक,

  1. परिषद्के तीसरे दिन श्री ग॰ वा॰ मावलंकरने अंग्रेजी मालके बहिष्कारका प्रस्ताव पेश किया था।
  2. बैरिस्टर; अहमदाबादके एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ता, जिन्होंने सन् १९१५ में गांधीजीको सत्याग्रह आश्रमकी स्थापनामें मदद दी थी।
  3. गंगाधरराव बालकृष्ण देशपाण्डे; कर्नाटकके प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्त्ता जो 'कर्नाटक केसरी' के नामसे प्रसिद्ध हैं।