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१२४. खद्दरकी प्रतिज्ञा[१]

श्रावण कृष्ण २, सं॰ १९७७ [३१ अगस्त, १९२०]

मैं आजसे प्रतिज्ञा करता हूँ की मैं हाथसे कते हुए सूतमें से बुनी हुई खदरको हि मेरे उपयोगके लीये खरीद करूंगा। टोपी और साकासको[२]इस प्रतिज्ञामें बंधन नहिं है।

मूल प्रति (जी॰ एन॰ २५१४) की फोटो-नकलसे।

 

१२५. दमनके बदले उपहास

असहयोग आन्दोलन परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयको बहुत नागवार गुजर रहा है और इसे समाप्त करनेके लिए उन्होंने दमनके बदले मजाक उड़ानेका तरीका अपनाया है। वैसे मैं उन्हें यह तरीका अपनानेके लिए हार्दिक रूपसे बधाई देता लेकिन पंजाब और खिलाफतके मामलोंपर उनका रुख इतना उद्धत और अहंकारपूर्ण रहा है कि ऐसा करना सम्भव नहीं रह गया है। अगर असहयोगपर उनके भाषणको सन्दर्भसे अलग करके पढ़ा जाये तो उसमें आपत्तिके लायक कोई बात नहीं है। यह बर्बरताकी स्थितिसे सभ्यताकी स्थितिकी ओर अग्रसर होनेका लक्षण है। अपने विरोधीका उपहास करना सभ्य राजनीतिका एक माना हुआ तरीका है। और अगर बराबर इसी तरीकेको जारी रखा जाये तो पंजाबके अधिकारी जैसा बर्बर व्यवहार करते रहे हैं उसकी तुलनामें यह स्थिति बहुत अच्छी रहेगी। उन्होंने इस आन्दोलनके सम्बन्धमें श्री मॉण्टेग्युके वक्तव्यको जो अर्थ दिया है, उसमें भी आपत्तिके लायक कोई चीज नहीं है। इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता कि अगर सचमुच हिंसाका विस्फोट हो तो किसी भी सरकारको उसे दबानेके लिए पर्याप्त शक्तिका उपयोग करनेका अधिकार है।

लेकिन मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि इस आन्दोलनका मखौल उड़ानेके उनके इस प्रयत्नको जब हम पंजाब और खिलाफतके सम्बन्धमें उनकी भावनाओंको ध्यानमें रखते हुए देखते हैं तो लगता है कि परमश्रेष्ठने जरूरत पड़नेपर ही इस

  1. इस प्रतिज्ञाका पाठ हिन्दी और अंग्रेजी दोनोंमें गांधीजीकी लिखावटमें है। इसमें शब्दोंके गांधीजी द्वारा दिये गये हिज्जोंको ज्योंका-त्यों रखा गया है। मूल प्रतिपर गांधीजीके साथ-साथ इन लोगोंके हस्ताक्षर भी हैं: चिमनदास ईसरदास, कुन्दनसिंह गंगासिंह मखीजानी, रामचन्द ताराचन्द मरजानी, पोहूमल हासोमल भूटानी, हरिराम मोहनदास रेलवानी, अलीमचन्द उद्धाराम जेन्दानी और रुक्मिणीबाई।
  2. मोजे।