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दमनके बदले उपहास

नेकीका सहारा ले लिया है। उन्होंने आतंक और त्रास फैलानेके तरीकेको तिलांजलि नहीं दी है; लेकिन वे इस आन्दोलनको इतने खुले ढंगपर और सचाईके रास्तेपर चलते देखते हैं कि इसे हिंसापूर्ण दमनके सहारे समाप्त करनेके किसी भी प्रयत्नका मतलब केवल यही नहीं होगा कि स्वयं वाइसराय महोदय उपहासके पात्र बन जायेंगे बल्कि यह भी होगा कि सही विचार रखनेवाले सभी लोग उनकी भर्त्सना करेंगे।

लेकिन अब हम जरा उन विशेषणोंपर विचार करें जिनका उपयोग परमश्रेष्ठने इस आन्दोलनका मजाक उड़ाकर, इसे समाप्त करनेके लिए किया है। ये विशेषण हैं——"निरर्थक", "नासमझी भरा", "मूलतः बेजान", "अव्यावहारिक" और "कल्पना-लोककी चीज"। उन्होंने विशेषणोंकी इस मालाका अन्त आन्दोलनको "मूर्खतापूर्ण योजनाओंमें भी सबसे मूर्खतापूर्ण योजना" बताकर किया है। इस आन्दोलनने परम- श्रेष्ठको इतना अधीर बना दिया है कि उन्होंने असहयोगकी हास्यास्पदता दिखानेके लिए अपना सारा शब्द-ज्ञान इस्तेमाल कर डाला है।

लेकिन परमश्रेष्ठका दुर्भाग्य कहिए कि जिस प्रकार दमन करनेसे इस आन्दोलनका और अधिक पनपता निश्चित है उसी प्रकार मखौल उड़ानेसे भी यह बराबर बढ़ेगा। कोई भी जीवन्त आन्दोलन उस आन्दोलनको चलानेवाले लोगोंके अधैर्य, अज्ञान या आलस्यके कारण ही मर सकता है। जिस आन्दोलनके संचालक कर्मठ लोग हों वह आन्दोलन कभी "बेजान" हो ही नहीं सकता, और मैं दावा करता हूँ कि असहयोग समितिके सदस्य ऐसे ही कर्मठ लोग हैं। और "अव्यावहारिक" तो यह है ही नहीं, क्योंकि हम देखते हैं कि हर कोई यह स्वीकार करता है कि अगर जनताने इसके प्रति पूरे उत्साहका परिचय दिया तो यह आन्दोलन अपना लक्ष्य सिद्ध करके रहेगा। साथ ही यह भी बिलकुल सत्य है कि अगर जनताने इसके प्रति उत्साह नहीं दिखाया तो सभी लोग इस आन्दोलनको मात्र कल्पनाकी चीज ही बतायेंगे जो व्यवहार्य नहीं है। अब यह राष्ट्रका दायित्व है कि वह संगठित असहयोग करके इसका कोई प्रभावकारी उत्तर दे, और आज जो लोग इस आन्दोलनका उपहास कर रहे हैं उन्हें इसका सम्मान करनेको मजबूर कर दे। उपहास भी दमनके समान ही है। दोनों ही जब अपने इरादेमें नाकामयाब होते हैं तो जिनका दमन या उपहास किया जाता है, तब ये उनके प्रति सम्मान-भावमें बदल जाते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-९-१९२०