प्रमुख रचयिता श्री लॉयड जॉर्ज हैं, और जॉर्ज महोदयने कभी इस जिम्मेदारीसे इनकार नहीं किया है। उन्होंने कुस्तुन्तुनिया, थ्रेस और एशिया माइनरके धन-धान्यपूर्ण प्रसिद्ध भू-भागके सम्बन्धमें भारतीय मुसलमानोंको शपथपूर्वक जो वचन दिया था उसका कोई खयाल न करते हुए आश्चर्यजनक उद्धतताके साथ इन शर्तोंको उचित ठहराया है। जब इन शर्तोंके पीछे सिर्फ ग्रेट-ब्रिटेनकी ही प्रेरणा रही है तो इनकी जिम्मेदारी मित्र-राष्ट्रोंपर डालना ठीक नहीं। जब हम इस बातकी ओर ध्यान देते हैं कि वाइसराय महोदय मुसलमानोंके दावेको न्यायसम्मत मानते हैं तो उनका अपराध और भी बड़ा प्रतीत होता है; और इसे वे न्यायपूर्ण तो मानते ही हैं, क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं मानते तो फिर उसे "स्वीकार करानेके लिए जोर" क्यों डालते?
मेरे विचारसे परमश्रेष्ठके पंजाबसे सम्बन्धित इस भाषणके कारण इस राष्ट्रके लिए यह और जरूरी हो गया है कि वह सरकारको इन दोनों अन्यायोंका निराकरण करनेको बाध्य करनेके लिए कोई रास्ता ढूँढे। तथाकथित सुधारोंका लाभ तो बादमें देखा जायेगा।
यंग इंडिया, १-९-१९२०
१२७. डिप्टी कमिश्नरकी हत्या
श्री विलोबीकी हत्या एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। स्वभावतः जनसाधारणमें इस हत्यासे बड़ा रोष फैला है और मृत व्यक्तिके प्रति सहानुभूति जाग्रत हुई है। यह हत्या एक निर्मम, विवेकशून्य और धर्मान्धतापूर्ण कृत्य था। इससे खिलाफतके उद्देश्यका अहित ही हुआ है, हित नहीं। श्री विलोबीका टर्कीके सुलहनामेमें कोई हाथ नहीं था। लगता है, वे स्वयं एक लोकप्रिय अधिकारी थे। किसी निर्दोष व्यक्तिको, उसकी जातिके किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किये गये अपराधके कारण मार डालना पागलपनके सिवा और क्या कहा जा सकता है? तथापि इस तथ्यको स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अनेक मुसलमान इस हत्याको शहीदोंको शोभा देनेवाला एक पुनीत कार्य मानेंगे। मैंने मुसलमानोंको बड़े शान्त भावसे ऐसा कहते सुना है कि इस प्रकारकी हत्याएँ न केवल उचित हैं बल्कि श्रेयस्कर भी हैं। मैं ऐसे अनेक हिन्दुओंको जानता हूँ जिनका कहना है कि यह बम फेंकनेका ही परिणाम था कि बंगालका फिरसे एकीकरण[१]हो पाया। मुझे मालूम है कि बहुत से लोग ढींगराको[२]शहीद मानते हैं। सिन फैन दलवाले अपने देशको अंग्रेजोंसे आजाद करानेके लिए खुले तौरपर हत्याएँ और अन्य