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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२६५

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गुजरात राजनीतिक सम्मेलन

सार्वजनिक भर्त्सना करके (यद्यपि ऐसी भर्त्सना आवश्यक ही है) या शिष्टाचार निभानेके लिए ऐसी भर्त्सना में शामिल होकर सन्तोष मान लेना पर्याप्त नहीं है। हमारे लिए यह जरूरी है कि हम लगातार सार्वजनिक रूपसे और व्यक्तिगत रूपसे भी लोगोंके बीच हिंसासे दूर रहनेकी आवश्यकताका प्रचार करें; हम उन्हें समझायें कि विशेषकर ऐसे अवसरपर इस बुराईसे दूर रहना कितना जरूरी है जब कि सफलताकी आशाओंसे पूरित असहयोग आन्दोलन चल रहा है। हमारे रोम-रोमको यह अनुभूति होनी चाहिए कि प्रत्येक हत्या, प्रत्येक हिंसात्मक कृत्य हमारे आन्दोलनकी प्रगतिमें बाधक होगा।

यह आयरलैंडके सिन फैन आन्दोलन अथवा मिस्रके असहयोग आन्दोलनसे हमारे असहयोग आन्दोलनका भेद स्पष्ट कर देनेका अवसर है। सिन फैन आन्दोलन अपनी सफलताके लिए अहिंसापर आधारित नहीं है, और न कभी था। सिन फैन दलके लोग हिंसाका प्रयोग हर रूपमें और हर तरहसे करते हैं। उनके कृत्योंका "त्रासकारी" रूप जनरल डायरके कृत्योंके त्रासकारी रूपसे भिन्न नहीं है। अगर हम चाहें तो सिन फैन दलवालोंकी क्रूरताको क्षमा कर सकते हैं, क्योंकि हम उनके उद्देश्य के प्रति सहानुभूति रखते हैं। परन्तु इसके यह माने नहीं हैं कि उनके कृत्य जनरल डायरके कृत्यसे भिन्न हैं। केन्द्रीय खिलाफत समितिने असहयोग आन्दोलनके दौरान स्पष्ट रूपसे और सोच-समझकर अहिंसाको अपने सिद्धान्तके रूपमें अंगीकार किया है। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने ही प्राणोंकी तरह अंग्रेजोंके प्राणोंकी भी रक्षा करें। हमें स्वेच्छासे हिंसक लोगोंके हाथोंसे अंग्रेजोंकी रक्षा करनेवाले स्वयंसेवकोंकी हैसियत अख्तियार कर लेनी चाहिए। हमारी सफलता हमारे बीच वर्तमान हिंसात्मक और धर्मान्ध तत्त्वोंको नियन्त्रित रखनेकी हमारी क्षमतापर निर्भर करती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-९-१९२०
 

१२८. गुजरात राजनीतिक सम्मेलन

गुजरात राजनीतिक सम्मेलनको जो निर्णय लेना था, ले लिया है। स्वागत समितिके अध्यक्ष तथा सम्मेलनके वयोवृद्ध सभापति, दोनोंने जो संक्षिप्त और सारगर्भित तथा दृढ़तासूचक भाषण दिये, उनके बाद सम्मेलनके निर्णयके बारेमें सन्देहकी कोई गुंजाइश नहीं रह गई है। परन्तु असहयोगके विस्तृत कार्यक्रमको स्वीकार करनेके लिए, शायद कोई भी तैयार न था। सम्मेलनके प्रस्ताव स्वभावतः गुजरातीमें थे। खास तौरसे 'यंग इंडिया' के पाठकोंके लाभके लिए उनका अनुवाद दिया जा रहा है।[]मैं पाठकोंसे उन्हें देखनेका अनुरोध करूँगा।

  1. इन प्रस्तावोंका अनुवाद यंग इंडियाके १-९-१९२० के अंकमें प्रकाशित किया गया था।