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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



सम्मेलनने अन्तिम रूपसे निर्णय कर डाला है; अब उसके लिए पीछे जानेकी कोई गुंजाइश नहीं रह गई। उसने कांग्रेसके आदेशकी प्रतीक्षा जान-बूझकर नहीं की है। गुजरातियोंका खयाल है कि उनके विचार काफी सुनिश्चित बन चुके हैं और वे अब कोई निश्चित कदम उठा सकते हैं। मैं उनको साधुवाद देता हूँ। उन्हें भरपूर चेतावनी दे दी गई थी। विरोध करनेवालोंके नेता राव बहादुर रमणभाई थे। परन्तु उनके पक्षके समर्थकोंकी संख्या बहुत छोटी थी। उनकी चेतावनी एक ही वाक्यमें व्यक्त की जा सकती है: असहयोगके प्रचारका उद्देश्य अराजकताकी ऐसी भावना जागृत कर देना है जिसे नियन्त्रित रखना करोड़ोंकी आबादीवाले इस राष्ट्रमें असम्भव हो जाये। यह एक ऐसे नेताकी चेतावनी है, जिसने अपना समस्त जीवन राजनीतिक और सामाजिक सुधारमें बिताया है और इस कारण हमारे सम्मानका पात्र है। गुजरात सम्मेलनने असहयोगके परिणामोंपर भली-भाँति विचार करके ही उसके पक्षमें अपना मत दिया है। श्री अब्बास तैयबजीने अपने भाषणके अन्तमें मर्मस्पर्शी स्वरमें कहा कि उन्हें न चाहते हुए भी असहयोगको अपनाना पड़ रहा है, क्योंकि अगर वे अपने आत्मसम्मानकी रक्षा करना चाहते हैं और अपने पीछे कोई स्वस्थ परम्परा छोड़ जाना चाहते हैं तो उनके सामने इसके अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है। एक जमाना था जब ब्रिटिश न्याय-भावनामें उनकी सहज आस्था थी, परन्तु अब नहीं रह गई है; और अपनी इस आस्थापर इतना बड़ा आघात लगनेके बाद वे तबतक ब्रिटिश सरकारका समर्थन नहीं कर सकते जबतक कि वह अपनेको अन्यायसे मुक्त नहीं कर लेती।

सम्मेलनने उपाधियों, अवैतनिक पदों, अदालतों, सरकारी स्कूलों और कौंसिलोंके बहिष्कारकी आवश्यकतापर जोर दिया है। सम्मेलनने एक अलग प्रस्ताव पास करके, जो लोग मेसोपोटामियामें सैनिकों, क्लर्को या मजदूरोंकी हैसियतसे काम करनेके लिए भरती होना चाहते हैं, उन्हें वैसा न करनेकी सलाह दी है। सम्मेलनने महाविभव ड्यूक ऑफ कनॉटके स्वागत-समारोहका भी बहिष्कार करनेको कहा है। यह उनके आगमनको भी उसी दृष्टिसे देखता है जिस दृष्टिसे महाविभव युवराजके आगमनको देखता है। इसने स्वदेशीपर स्वीकृति दी है, ब्रिटिश मालके बहिष्कारके प्रस्तावको अव्यावहारिक बताया है और उसे स्वदेशी तथा असहयोगकी सच्ची भावनासे असंगत मानते हुए एक बहुत बड़े बहुमतसे उसे अस्वीकार कर दिया है। रचनात्मक प्रस्तावोंके रूपमें उसने यह सुझाव दिया है कि पंचायती अदालतें, राष्ट्रीय स्कूल और विश्व- विद्यालय स्थापित किये जायें, और गाँवोंमें डाकुओं और लुटेरोंसे बचावके लिए स्वयंसेवकों और बालचरोंके दल संगठित किये जायें।

सम्मेलने अन्य शिकायतोंका उल्लेख करनेवाले प्रस्तावोंकी भाषा बदल दी है। इस तरह इसका कार्यक्रम स्पष्ट, असन्दिग्ध, निश्चयात्मक और सर्वांगपूर्ण है। लेकिन इसे निभानेके लिए गुजरातियोंको अपनी समस्त शक्ति और सामर्थ्य लगा देनी पड़ेगी। जब सरकारसे यह आशा की जाती है कि वह प्रस्तावोंको कार्यान्वित करेगी तब महज प्रस्ताव पास कर देनेसे ही काम चल जाता है। हमने सच्चे दिलसे पूरी तरह