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हमारा बोझ

सोच-समझकर ये प्रस्ताव पास किये हैं। इसलिए अगर हम इन्हें कार्यान्वित नहीं करते तो यह हमारे लिए लज्जाका विषय होगा।

जनसाधारणमें जो जागृति आ रही है, उसमें शंका नहीं की जा सकती। सम्मेलनने एक सबल कार्यकारिणी समिति नियुक्त की है। गुजरातमें असहयोगको एक वास्तविकता बना देना बहुत-कुछ इस समितिकी लगन और देशभक्तिपर निर्भर करेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-९-१९२०

 

१२९. हमारा बोझ

पीर महबूब शाहने घुटने टेक दिये हैं। वे एक बहादुर आदमी थे। उनकी गुनहगारी या बगुनाहीसे मुझे कोई मतलब नहीं। जो शब्द कहनेका आरोप उनपर लगाया जाता है, अगर उन्होंने वे शब्द कहे तो निश्चय ही उन्होंने लोगोंको हिंसाके लिए भड़काया। उस अवस्थामें उन्हें जो दो वर्षकी सादी कैदकी सजा दी गई, वह निश्चय ही हलकी थी। देशके बड़ेसे-बड़े व्यक्तिको भी——चाहे वह अधिकारी-वर्गका हो अथवा जनता के बीचसे आता हो——अपराध सिद्ध हो जानेपर दण्डसे मुक्ति नहीं दी जा सकती। परन्तु जिस कारणसे पीर साहबके प्रति मेरे मनमें प्रशंसाका भाव पैदा हुआ, वह कारण था उनका वह साहस, जिस साहसके साथ उन्होंने अपना बचाव पेश न करने और वैध रूपसे नियुक्त एक न्यायाधिकरण द्वारा दिये गये दण्डको धैर्यपूर्वक सह लेनेका निश्चय किया। मैंने सोचा, उन्होंने संघर्षके मर्मको समझ लिया है। और उनके अनुयायियोंने जिस ढंगसे अपने नेताकी कैदकी बात बरदाश्त की, वह भी अत्यन्त सन्तोषजनक थी।

किन्तु बादके समाचारसे पता चलता है कि पीर साहबने क्षमा-याचना करके रिहाई पा ली। इससे हमारी कमजोरी प्रकट होती है। हमारा लालन-पालन हमें सर्वथा दुर्बल और पुंसत्वहीन बना देनेवाले वातावरणमें हुआ है, इसलिए हमारे बीच जो ऊँचेसे-ऊँचे व्यक्ति हैं, वे भी एक साधारणसे तूफानसे सामना पड़ते ही झुक जाते हैं। पश्चिमके राष्ट्रोंको जिस कठिन अनुशासनसे गुजरना पड़ता है, उस अनुशासनको झेले बिना हम पाश्चात्य सभ्यताके ऐशो-आरामके पीछे पागल हैं। नतीजा यह हुआ है कि हममें सादी कैदकी सजाके कष्टोंको सहनेकी क्षमता भी लगभग समाप्त हो गई है। परन्तु पीर महबूब शाहके आत्म-समर्पणसे हमें हताश होनेकी जरूरत नहीं। जब किसी बोझसे भरी गाड़ीको अनेक घोड़े खींच रहे हों और उनमेंसे एक थक जाये या अन्य किसी कारणसे असमर्थ हो जाये तो बाकी घोड़े——अगर वे दमदार हैं तो——अपने साथीका भार बँटा लेते हैं और अधिक जोर लगाकर उस बोझको खींच ले जाते हैं। फिर आप ही सोचिए कि हम लोगोंको, जो कि मनुष्य हैं और जिन्हें ईश्वरने बुद्धिसे भी युक्त कर रखा है, अपने साथीके घुटने टेक देनेपर उसके हिस्सेका बोझ ढोनेके लिए उन पशुओंकी तुलनामें कितना अधिक जोर लगाना चाहिए?