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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अतएव आइए, अब हम देखें कि उस बोझका वास्तविक अर्थ क्या है। जो सैनिक अपने प्रतिद्वन्द्वीकी शक्तिकी अवगणना करता है, वह कर्त्तव्यपरायण सैनिक नहीं है। इसलिए हम जिस सरकारके विरुद्ध इस भीषण संघर्षमें लगे हुए हैं उसकी शक्तिका सही ज्ञान होना हमारे लिए आवश्यक है। यह सरकार ऐसे लोगोंका समूह है, जो मुख्यतः बड़े धूर्त और मक्कार हैं; उनका कोई दीन और ईमान नहीं है, वे झूठे हैं। लेकिन साथ ही वे बड़े साहसी, योग्य, आत्मबलिदानी और संगठनकी क्षमता से युक्त हैं। हमें उनके साहसका मुकाबला और भी अधिक साहस दिखाकर, उनके आत्मत्यागका मुकाबला और बड़े आत्मत्यागका परिचय देकर और उनकी संगठन-शक्तिका मुकाबला और अच्छी संगठन-शक्तिका उदाहरण पेश करके करना है। इनके हाथोंमें बेजोड़ हिंसात्मक शस्त्रास्त्र हैं। उनका सामना हमें अहिंसासे करना है। अगर हम इस कसौटीपर खरे नहीं उतरते तो हमें गुलामीको स्थितिमें बने रहनेमें सन्तोष मानना चाहिए। असहयोगने राष्ट्रको ऐसा अवसर दिया है कि वह अपनी प्रतिष्ठा कायम रखनेके लिए आवश्यक सभी गुणोंका परिचय दे सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १-९-१९२०

 

१३०. पत्र : एस्थर फैरिंगको[१]

कलकत्ता जाते हुए
२ [सितम्बर][२], १९२०

रानी बिटिया,

घरसे भेजा हुआ तुम्हारा पहला विस्तृत पत्र मिला। पढ़कर बहुत खुशी हुई।

मैंने मेननके साथ चार दिन बड़े अच्छे बिताये। वह खरी बात कहनेवाला, ईमानदार और साफ आदमी है। उसमें बनाव नहीं है। मैंने उससे कह दिया है कि वह जब भी चाहे आश्रम आ सकता है। मैंने यह भी कह दिया है कि आश्रममें तुम और वह दोनों रह सकते हो, उसे अपना घर भी बना सकते हो।

उसके सामने अब भी कुछ कठिनाइयाँ हैं। उसपर दबाव डाला जा रहा है कि वह तुम्हारी खातिर ईसाई बन जाये। मैं इसे तुम दोनों ही के लिए अशोभनीय मानता हूँ। अपना-अपना धर्म दोनोंके लिए सर्वोपरि होना चाहिए। यह कोई यन्त्र नहीं है कि जब चाहा उसमें परिवर्तन कर दिया। इसलिए मेरी तो यह राय है कि तुम दोनोंको अपना-अपना धर्म कायम रखना चाहिए।

  1. एक डैनिश मिशनरी, जो १९१६ में भारत आई थीं और बादमें साबरमती आश्रममें रहने लगीं। गांधीजी उनके साथ पुत्रीवत् व्यवहार करते थे।
  2. मूल पत्रमें तिथि २ अगस्त दी गई है पर उस दिन गांधीजी बम्बईमें थे। वे २ सितम्बरको कलकत्ताके मार्गमें थे और ३ को वहाँ पहुँचे थे।