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भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, कलकत्तामें


और यदि तुम लोग अपना वंश आगे चलाना तय करते हो, तब फिर बच्चोंके धर्मका क्या होगा? ईश्वरसे डरनेवाले हर व्यक्तिके लिए यह एक बहुत अहम सवाल है।

मुझे तो इसका एक यही हल दिखाई पड़ता है कि तुम लोग शादी तो करो, पर तुम दोनोंके सम्बन्ध वासना-रहित रहें। लेकिन तुम दोनोंको ईश्वर जैसी प्रेरणा दे, वैसा ही करना। मेननकी इच्छा थी कि उसके साथ मेरी जो बातचीत हुई है उसे मैं तुमको लिख दूँ और वह मैंने कर दिया है। मेरा बतलाया हुआ हल तब उसको ठीक लगा था। परन्तु उसका कोई महत्त्व नहीं। तुम्हारे सम्बन्ध इतने पवित्र हैं कि उनमें दखल नहीं देना चाहिए।

एन मेरी अर्थात् कुमारी पीटर्सन—उनका आग्रह है कि मैं उनको इसी नाम से पुकारूँ—और मैं, दोनों ही एक-दूसरेको बहुत पसन्द आये। माफ करनेकी तो कोई बात थी ही नहीं। पर मैं उनसे अपनी भेंटका वर्णन नहीं करूँगा क्योंकि उन्होंने तुमसे उसका वर्णन कर ही दिया होगा।

बा, देवदास, महादेव, इमाम साहब, शंकरलाल बैंकर, अनसूयाबेन भी अन्य कई लोगोंके साथ मेरे पास ही रह रहे हैं। तुम तो इन लोगोंको जानती हो। हरिलालसे मेरी भेंट आज रात कलकत्तामें होगी।

मैं जानता हूँ कि तुम वहाँ भारतके प्रति प्रेमका प्रचार कर रही हो। ईश्वरसे तुम्हारी और तुम्हारे उद्देश्यकी मंगल-कामना करता हूँ।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकलसे।

 

१३१. भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, कलकत्तामें

४ सितम्बर, १९२०

इसके बाद महात्मा गांधी कुर्सीपर, जिसे एक व्यक्ति सँभालकर पकड़े हुए था, खड़े हुए। श्रोतृसमूह देरतक जोरदार हर्ष-ध्वनि करता रहा। उन्होंने अंग्रेजीमें बोलते हुए श्रोताओंसे निवेदन किया कि वे श्रीमती बेसेंटका भाषण धैर्यके साथ सुनें। श्रोताओंने उनकी बात बड़ी शान्तिसे सुनी। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि मैं उन व्यक्तियोंसे दो शब्द कहना चाहता हूँ जो एक अधिकृत वक्ताको श्रोताओंके समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करनेसे रोकनेका प्रयत्न कर रहे हैं। यह उनके लिए और इस जनसमुदायके लिए भी लज्जाकी बात है। मैं आप लोगोंमें से प्रत्येकसे यही कहूँगा कि यदि आप लोग यहाँ न्याय प्राप्त करनेके उद्देश्यसे एकत्र हुए हैं तो दूसरोंके साथ न्याय करना आपका प्रथम और पुनीत कर्तव्य है। (हर्षध्वनि) श्री गांधीने आगे कहा :

आप ऐसा न मानें कि श्रीमती बेसेंटने जो स्थिति अपनाई है (शर्म-शर्मकी आवाजें) वह

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