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गुजरातकी पसन्द

सम्पादन करना और भ्रमण करना, ये दोनों कार्य अगर असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य ही हैं। इसी कारण मैं कितने ही लेख नहीं लिख पाया हूँ। संवाददाताओंका पथप्रदर्शन करना मुझे आता है; उन्हें प्रोत्साहन देनेकी अपनी इच्छाको भी मैं पूरा नहीं कर सका हूँ।

ऐसे अनेक प्रकारके दोषोंके बावजूद पाठक धैर्यपूर्वक 'नवजीवन' को पढ़ते हैं, यही मेरे लिए कम सन्तोषकी बात नहीं है। मेरी आकांक्षा है कि उसमें उल्लिखित विचारोंका अशिक्षित-वर्गमें भी प्रसार हो। फलस्वरूप मैं पाठकोंसे अनुरोध करूँगा कि वे 'नवजीवन' के जिन विचारोंसे सहमत हों उन विचारोंको अशिक्षित-वर्गके सम्मुख भी रखें। 'नवजीवन' को अधिक पठनीय बनानेके लिए अपने प्रयत्नोंको मैं जारी रखूँगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ५-९-१९२०

 

१३३. गुजरातकी पसन्द

गुजरातने अपना फर्ज अच्छी तरह अदा किया है। परिषद्ने[१]जिस महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर अपना निर्णय दिया है वैसा महत्त्वपूर्ण प्रश्न परिषद्के सम्मुख न तो पहले कभी आया और न कदाचित् आगेके सौ वर्षोंमें कभी आयेगा। ऐसे समय हमें दृढ़ नेताओंकी आवश्यकता थी। वे हमें मिल गये। श्री वल्लभभाई पटेल और बुजुर्ग अब्बास तैयबजीके भाषणोंको पढ़कर सभी स्वीकार करेंगे कि उनके भाषण दृढ़ता और विनयशीलतासे परिपूर्ण तथा स्पष्ट थे। स्वागत मण्डलके अध्यक्षने अत्यन्त सरल गुजरातीमें प्रभावशाली ढंगसे अपने विचारोंको संक्षेपमें प्रस्तुत किया। श्री अब्बास अलीके भाषणकी शैलीके विषयमें हम कुछ नहीं कह सकते, क्यों कि वह मूलतः अंग्रेजीमें लिखा गया था। अन्य भाषण संक्षिप्त व सरल थे। मैंने अध्यक्ष-पदसे दिये गये ऐसे संक्षिप्त और सरल भाषण शायद ही देखे-सुने हों।

जैसे प्रमुख थे वैसी ही परिषद् थी। परिषद्ने जो प्रस्ताव पास किये हैं उनमें कोई कसर नहीं थी। प्रस्तावोंके अमलकी कोई शर्त नहीं है, इनपर तुरन्त ही अमल शुरू किया जानेवाला है।

आजतक जो प्रस्ताव पास हुए हैं उनमें सरकारसे कुछ करनेके लिए कहा गया था; किन्तु अब तो हमें ही [कुछ] करना है।

परिषद्को पर्याप्त चेतावनी दे दी गई है। नेताओंने सभी संकटोंके प्रति चेतावनी दी है। लोगोंको यह बात खूब अच्छी तरह समझा दी गई है कि अगर जनताने खुद अपने ही द्वारा लिये गये निश्चयको क्रियान्वित करनेकी शक्ति न दिखाई तो उसकी

  1. २७, २८ और २९ भगस्त, १९२० को हुई गुजरात राजनीतिक परिषद्।