मान-हानि होगी। कदाचित् महासभा ही असहकार अथवा उसमें सुझाये गये कार्यक्रमके विरुद्ध मत दे, लेकिन परिषद्ने सर्वसम्मतिसे असहकारको स्वीकार किया है।
गुजराती व्यवहार-कुशल माने जाते हैं, वे आवेशमें आकर प्रस्ताव पास नहीं करते। प्रस्ताव पास करनेसे गुजरातियोंकी प्रतिष्ठामें जितनी वृद्धि हुई है अगर वे उसपर अमल न करेंगे तो उनकी प्रतिष्ठा उतनी ही कम हो जायेगी और गुजरात यदि अपने निश्चयसे डिगेगा तो उससे पूरे देशको नुकसान पहुँचेगा। किसी भी कार्यको आरम्भ न करना बुद्धिमत्ताका पहला लक्षण है, लेकिन कार्यको आरम्भ करनेके बाद उसे किसी तरह भी पार लगाना मनुष्य मात्रका कर्त्तव्य है।
गुजराती भारतमाताके सम्मानके न्यासी बने हैं, प्रभु उन्हें दृढ़ता प्रदान करे।
परिषद् ने विधान परिषदों, सरकारी स्कूलों और अदालतोंका बहिष्कार करनेका प्रस्ताव पास किया है। जिन व्यक्तियोंके पास पदवियाँ आदि हैं परिषद्ने उन व्यक्तियोंसे पदवियाँ त्याग देनेका अनुरोध किया है। स्वदेशीको सम्पूर्णतः स्वीकार करते हुए परिषद्ने ब्रिटिश मालके बहिष्कारपर असहमति प्रकट की है। माननीय ड्यूक ऑफ कनॉट के आगमनपर उनका अभिनन्दन करनेकी बातका विरोध किया है। लोगोंको मैसोपोटामियाके लिए सिपाही, क्लर्क तथा मजदूरकी तरह भरती न होनेकी सलाह दी है।
इसका अर्थ यह हुआ कि :
१. खिताबयाफ्ता लोगोंको अपने खिताब आदि छोड़ देने चाहिए।
२. वकीलोंको अदालतोंका धन्धा छोड़ देना चाहिए और निजी रूपसे झगड़ोंका निपटारा करनेकी व्यवस्था करनी चाहिए।
३. माता-पिताको ऐसे किसी भी स्कूलसे, जिसमें सरकारका तनिक भी हाथ हो, अपने बच्चोंको उठा लेना चाहिए।
४. मतदाताओंको विधान परिषदोंके किसी भी उम्मीदवारको अपने मत नहीं देने चाहिए और उम्मीदवारोंको अपने नाम वापस ले लेने चाहिए।
५. प्रत्येक स्त्री-पुरुष और बालकको सम्पूर्ण स्वदेशीका पालन करना चाहिए और उसके लिए घर-घर कातना व बुनना शुरू करना चाहिए।
इससे आप देख सकेंगे कि प्रजाने अपने सिरपर कोई कम जिम्मेदारी नहीं उठाई है। इतना होनेपर भी इस जिम्मेदारीमें उपद्रवका भय नहीं है। मात्र लोगोंकी कायरता अथवा आलस्यका ही भय है। उपर्युक्त कार्यक्रममें पैसेका नुकसान भी बहुत कम है।
अदालतोंकी जगह कौनसी संस्थाएँ हों? स्कूलोंकी एवजमें भी क्या होगा? इन प्रश्नोंके उत्तरमें परिषद्ने पंचोंकी मार्फत न्याय प्राप्त करनेकी योजनाका तथा नये स्कूल स्थापित करने अथवा चालू स्कूलोंको राष्ट्रीय स्कूलोंमें बदलनेका सुझाव दिया है।
यह सब कहते हुए तो बहुत सुन्दर प्रतीत होता है, लेकिन प्रचुर कार्यकर्त्ताओंके बिना कुछ नहीं हो सकता। कार्यकर्त्ता भी साहसी, नीतिमान, समझदार, विवेकी और धैर्यवान होने चाहिए। ऐसे कार्यकर्त्ता यदि हमें मिल सकें तो गुजरात, जो आज गुलामीके बन्धनोंमें जकड़ा हुआ है, कल ही स्वतंत्र हो जाये और उसके स्वतन्त्र होनेपर उस सीमातक भारतवर्षको भी स्वतन्त्र माना जायेगा।