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१३५. असहयोगका प्रस्ताव[१]

५ सितम्बर, १९२०

चूँकि भारत सरकार और साम्राज्य सरकार दोनों खिलाफतके सवालपर भारतके मुसलमानोंके प्रति अपना कर्त्तव्य निभानेमें बिलकुल असफल रही हैं और प्रधान मंत्रीने उन्हें शपथपूर्वक जो वचन दिया था उसे उन्होंने जान-बूझकर स्वयं ही तोड़ डाला है और चूँकि हर गैरमुस्लिम भारतीयका यह कर्त्तव्य है कि वह अपने मुसलमान भाइयोंको, उनके धर्मपर जो आपदा आ पड़ी है उसे दूर करनेके उनके प्रयासमें, हर वैध तरीके से मदद दे।

और चूँकि १९१९ के अप्रैल मासमें जो-कुछ घटित हुआ उसमें उक्त दोनों सरकारोंने पंजाबके निर्दोष लोगोंकी रक्षा नहीं की, और उन लोगोंके प्रति अधिकारियोंके असैनिकोचित और बर्बर व्यवहारके लिए उन्हें दण्डित नहीं किया तथा उन सर माइकेल ओ'डायरको दोषमुक्त कर दिया है जिन्होंने अपने-आपको अधिकारियोंके अधिकांश अपराधोंके लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे जिम्मेदार सिद्ध कर दिया है और साबित कर दिया है कि वे अपने प्रशासनके अधीन रहनेवाले लोगोंके दुःखोंके प्रति कितने हृदयहीन हैं; और चूँकि लार्ड सभामें जो बहस हुई उससे भारतके लोगोंके प्रति सहानुभूतिका घोर अभाव प्रकट होता था और पंजाबमें जो योजनाबद्ध आतंक और त्रासकी नीति अपनाई गई उसके समर्थनका भी आभास मिलता था; और चूँकि वाइसराय महोदयका पिछला भाषण इस बातका द्योतक है कि खिलाफत और पंजाबके मामलोंपर सरकारको कोई पश्चात्ताप नहीं है।

इसलिए इस कांग्रेसका विचार है कि जबतक उपर्युक्त दो अन्यायोंका निराकरण नहीं कर दिया जाता तबतक भारतमें तोषका कोई भाव नहीं हो सकता, और राष्ट्रके सम्मानको प्रतिष्ठित करने तथा भविष्यमें ऐसे अन्यायोंकी पुनरावृत्तिको रोकनेका एकमात्र प्रभावकारी उपाय स्वराज्य प्राप्त करना है। इस कांग्रेसका यह भी विचार है कि भारतके लोगोंके सामने इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया है कि वे क्रमिक अहिंसक असहयोगकी नीतिका समर्थन करें और उसपर तबतक चलते रहें जबतक कि उक्त दोनों अन्यायोंका निराकरण नहीं हो जाता और स्वराज्य नहीं मिल जाता।

और चूँकि जिन वर्गोंने अबतक जनमतका पथ-प्रदर्शन और प्रतिनिधित्व किया है, शुभारम्भ उन्हें ही करना है, और चूँकि लोगोंको दिये गये ओहदों और खिताबोंके जरिये, सरकारी नियन्त्रणमें चलनेवाले स्कूलोंके जरिये, अपने न्यायालयों और अपनी धारासभाओंके जरिये ही सरकार अपनी शक्ति बढ़ाती है और चूँकि इस आन्दोलनके

  1. यंग इंडियामें प्रकाशित इस लेखका उप-शीर्षक था: "श्री गांधीका प्रस्ताव"।