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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२७७

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१३६. भाषण : विषय-समितिको बैठकमें[]

५ सितम्बर, १९२०

श्री गांधीने अपने प्रस्तावके[]समर्थनमें बोलते हुए नौकरशाहीके प्रति घोर अविश्वास प्रकट किया। उन्होंने कहा कि अमृतसर कांग्रेसके अवसरपर मेरे खयाल कुछ और थे; किन्तु चूँकि अंग्रेज लोग कूटनीतिके बड़े उस्ताद हुआ करते हैं, इसलिए अब मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि ये सुधार एक बहुत ही खतरनाक ढंगका जाल है——एक परदा है, जिसके पीछे हमारे देशको गुलामीमें बाँधनेवाली सुनहरी जंजीरें छिपी हुई हैं। मैं आप सबको होशियार कर देता हूँ कि इस जालमें कभी न फँसिए। अगर आप सच्ची भावनासे यह आन्दोलन प्रारम्भ-भर कर दें और मेरी इच्छाके अनुसार इसे चलायें तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ——मुझे विश्वास है——कि आप एक वर्षके भीतर अपने देशको पूरी आजादी दिला देंगे। श्री गांधीने यह भी बताया कि राजनीतिक कार्योंमें जनसाधारण अब भी पिछड़ा हुआ है और निर्वाचन यन्त्र कैसे काम करता है, इसकी उसे कोई जानकारी नहीं है। मेरे विचारसे, यहाँके मतदाताओंमें उलझे हुए राजनीतिक सवालोंपर सही निर्णय लेनेकी शक्ति नहीं है, और न उनमें अपने लक्ष्यको ही समझनेकी क्षमता है, अतः इन सुधारोंके अधीन तो वे सिद्धान्तहीन लोगोंके हाथोंकी कठपुतली बन जायेंगे। श्री गांधीने अन्तमें कहा कि चुनावका बहिष्कार वह धुरी है जिसके चारों ओर, मेरे प्रस्तावमें जो कार्यक्रम रखा गया है, वह घूमता है। इसलिए इस सम्बन्धमें एकताके नामपर की गई कोई भी अपील मैं मंजूर नहीं कर सकता। अगर श्री तिलक-जैसे देशभक्त कौंसिलोंके सदस्य हो जाते तो उन्होंने जितना काम किया, उसका एक हिस्सा भी न कर पाते। मैं यह बात एक बार फिर कहता हूँ कि मुझे नरम दल वालोंके कौन्सिलोंमें प्रवेश पा जानेसे कोई भय नहीं है, और वे भले ही ऐसा मानते हों कि असहयोग एक खतरनाक चीज है, लेकिन मैं उनके मंगलकी ही कामना करता हूँ। मेरा आन्दोलन एक धार्मिक आन्दोलन है, और प्रत्येक सच्चे मुसलमानके लिए असहयोग आन्दोलन, जिसमें कौंसिलोंका बहिष्कार भी शामिल है, एक ऐसे धार्मिक आवेशकी तरह बन्धनकारी है जिसे वह कभी तोड़ नहीं सकता। मुसलमान लोग इस सवालपर इतने उत्तेजित हैं कि शान्ति और सुव्यवस्थाके हितमें और भ्रातृत्व तथा एकताके हितमें भी, हमें उनके साथ मिलकर सरकारसे असहयोग करना चाहिए। श्री दासकी[]योजनासे काम नहीं चलेगा।

  1. कलकत्ता कांग्रेस में।
  2. असहयोग सम्बन्धी प्रस्ताव।
  3. चित्तरंजन दास (१८७०–१९२५); प्रसिद्ध वकील और कांग्रेसके नेता; वक्ता और लेखक; १९२१ में कांग्रेसके अध्यक्ष।