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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



इसके बाद अध्यक्षके सामने दोनों प्रस्तावोंमें बहुतसे संशोधन पेश किये गये। संशोधनका प्रस्ताव पेश करनेवालोंमें श्री विजयराघवाचार्य[१], स्वामी श्रद्धानन्द[२], श्रीप्रकाश[३]पंडित नेहरू तथा अन्य बहुतसे लोग भी शामिल थे। तदुपरान्त श्री जिन्नानें,[४]लोगोंका ध्यान श्री दास और श्री गांधीके प्रस्तावोंके दो सिद्धान्तोंके बीच निर्णय करनेमें उठनेवाले मुद्दोंकी ओर आकृष्ट करते हुए प्रस्ताव और संशोधनोंपर आगे बहस करनेकी कार्यविधिके सम्बन्धमें जिज्ञासा प्रकट की।

यहाँ आकर श्री गांधीने प्रस्तावनाके सम्बन्धमें सहमति प्रकट करते हुए कहा कि मैं श्री दासकी प्रस्तावनाको, जिसमें असहयोगका उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना बताया गया है, स्वीकार करनेके लिए तैयार हूँ।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू ६-९-१९२०

 

१३७. भाषण : विषय समितिकी बैठकमें[५]

७ सितम्बर, १९२०

श्री गांधीने कहा कि मैं इस बातसे सहमत हो गया हूँ कि विद्यार्थी अपने स्कूल और वकील अपनी वकालत धीरे-धीरे छोड़ें। कारण यह है कि इस सम्बन्धमें मुझे जो व्यावहारिक अनुभव हुए हैं, उनका यही तकाजा है। असहयोग धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है, लेकिन "धीरे-धीरे" का मतलब अनन्त काल नहीं है। मैं छूट सिर्फ उन्हीं वकीलोंको दे रहा हूँ जो...[६] और जो अपनी परिस्थितियोंसे विवश होकर, तत्काल अपनी वकालत बन्द करनेमें असमर्थ हैं। यही बात स्कूलोंके सम्बन्धमें भी है।

इसके बाद वफादारी और पूर्ण उत्तरदायी शासनकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा इस सम्बन्धमें अपनी स्थितिके बारेमें मैं हिन्दू और मुसलमान दोनोंके भ्रम दूर

  1. सी॰ विजयराघवाचार्य (१८५२–१९४३); प्रमुख वकील और सक्रिय कांग्रेसी; १९२० की नागपुर कांग्रेसके अध्यक्ष।
  2. महात्मा मुंशीराम (१८५६–१९२६); बादमें श्रद्धानन्दके नामसे प्रसिद्ध आर्यसमाजके राष्ट्रवादी नेता जिन्होंने दिल्ली और पंजाबकी कगतिविधियोंमें प्रमुख भाग लिया।
  3. सन् १८९०–  ; कांग्रेसके नेता और स्वतन्त्रता संग्रामके सेनानी; पाकिस्तानमें भारतके प्रथम उच्चायुक्त।
  4. मुहम्मद अली जिन्ना (१८७६–१९४८); मुसलमान नेता; पाकिस्तानके जनक और प्रथम गवर्नर जनरल।
  5. पद भाषण कलकत्तामें आयोजित कांग्रेसकी विषय-समितिको बैठकमें दिया गया था।
  6. यहाँ मूलमें कुछ अंश कटा-फटा है।