कर देना चाहता हूँ। मेरे प्रस्तावपर जो पूर्ण स्वशासनसे सम्बन्धित संशोधन पेश किया गया उसे यदि मैंने स्वीकार किया है, तो इसलिए नहीं कि खिलाफतका सवाल स्वराज्यके सवालसे कम महत्त्वपूर्ण है। मेरे लिए तो खिलाफत और पंजाबके सवाल स्वराज्यके सवालसे भी बड़े हैं। मुझपर श्री पालका[१]संशोधन स्वीकार करनेके लिए भी दबाव डाला गया, लेकिन मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा कि अपनी अन्तरात्माकी खातिर ही नहीं बल्कि व्यावहारिक उपयोगिताकी दृष्टिसे भी इसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए। इसपर लोगोंने मुझसे कहा कि इस तरह तो मैं अपने-आपको कांग्रेसकी नौका डुबानेवाला व्यक्ति सिद्ध कर दूँगा, और ऐसी ही दूसरी बातें भी कही गई। लेकिन इन बातोंका मुझपर कोई असर नहीं पड़ता। अगर देशके हितके लिए कांग्रेसमें कभी दरार पड़ जाये तो मैं इसकी परवाह नहीं करता। अगर राष्ट्रवादियोंके बीच भी कोई भारी दरार पड़ जाये तो मुझे उसकी चिन्ता नहीं। कांग्रेस मेरी दृष्टिमें एक राष्ट्रीय संस्था है——राष्ट्रवादी अथवा नरम दलीय संस्था नहीं। पहले कांग्रेसका सिद्धान्त और विधान ऐसा था कि उसके मंचपर देशके सभी मतोंके लोगोंके लिए गुंजाइश थी। मैं तो यही समझता हूँ कि कांग्रेसको अपना यह रूप कायम रखना चाहिए। इस सम्बन्धमें किसी भी व्यक्तिपर किसी तरहका दबाव डालना गलत है। श्री सी॰ विजयराघवाचार्यने ऐसी बातें कही हैं जिनका मतलब यह है कि मैं अपनी अतीतको यश-प्रतिष्ठाका नाजायज फायदा उठा रहा हूँ। इससे मुझे बहुत दुःख हुआ है। उन्होंने कहा, मैं आपसे कहता हूँ कि कांग्रेसमें मेरे सम्बन्धमें एक व्यावहारिक व्यक्तिके रूपमें ही कोई धारणा बनाइए। मेरे संशोधनमें एक राजनीतिक सिद्धान्त भी समाहित है और एक धार्मिक सिद्धान्त भी, क्योंकि मैं समझता हूँ कि राजनीतिमें भी अन्तरात्मा और सदाशयतापूर्ण व्यवहार उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि व्यक्तिगत जीवनमें, हालांकि इस क्षेत्रमें परिणामका खयाल रखकर चलना पड़ता है और इसका भी ध्यान रखना पड़ता है कि किस उपायसे हम अपने लक्ष्यतक पहुँच सकते हैं। आप समस्त पूर्वग्रहोंको छोड़कर इस सवालपर अपना मत दीजिए। परिणाम चाहे जो निकले, लेकिन मेरा विचार तो यही है कि अल्पमतको कांग्रेससे अलग नहीं होना चाहिए, बल्कि उसमें बने रहकर अल्पमतको बहुमतमें परिवर्तित करनेके लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। अगर मैं हार जाऊँ तो मैं कांग्रेससे अलग नहीं होऊँगा, और जबतक कांग्रेसके मंचसे सभी मतोंके लोगोंके हृदयतक अपनी बात पहुँचा सकनेकी गुंजाइश देखूँगा तबतक मैं इसमें बना रहूँगा। लेकिन जब ऐसी गुंजाइश नहीं देखूँगा तो अवश्य इससे अलग हो जाऊँगा। मेरे विचारसे कांग्रेसका काम किसी बातपर स्वीकृति या अस्वीकृति देना और कार्रवाई करना नहीं है। इसका काम तो जनताके निर्णयको अभिव्यक्ति देना है। कांग्रेसके प्रस्तावके सम्बन्धमें मेरी जो कल्पना है, उसके अनुसार वह कोई दलगत प्रस्ताव नहीं है, और मैं समझता हूँ, उसके प्रस्तावोंके प्रति अन्ध-
- ↑ विपिनचन्द्र पाल (१८५८–१९३२); बंगालके शिक्षा-शास्त्री, ओजस्वी वक्ता और राजनीतिक नेता।